दुष्कर्म की जांच कैसे होती है? या दुष्कर्म की जांच कैसे  की जाती है?

 

प्रणाम दोस्तो आज के लेख में आप जानेगे कि “दुष्कर्म की जांच कैसे होती है”? या “दुष्कर्म की जांच कैसे की जाती है”? Charge Sheet (आरोपपत्र)  दाखिल करने के पहले की स्थिति जाँच, विवेचना (अन्वेषण / Investigation) कहलाती है। Cr.P.C के अध्याय XII में जांच की प्रक्रिया (तरीका) दी गई है।यह धारा 154 से 176 तक है।औरमजिस्ट्रेट द्वारा प्राइवेट शिकायत पर Cr.P.C  की धारा 202 (1) के तहत दिए गए जांच के निर्देश का मतलब  Complaint Case   में अभियोजन को मदद करना है, इसके पूरा होने पर आरोपपत्र दाखिल नहीं होता। जब कोई  किसी महिला या बच्चे के विरुद्ध कोई दुष्कर्म होने की संज्ञेय सूचना थाने के भारसाधक अधिकारी को प्राप्त होती है तो वह ऐसी प्रथम सूचना रिपोर्ट FIR को लिखने के लिए महिला पुलिस अधिकारी को नियुक्ति करगा जो उपनिरीक्षक (  Not below the rank of Sub-Inspector) के पद से अन्यून नहीं  होगी। सूचना दर्ज किए जाने की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाएगी।  संज्ञेय अपराध में पुलिस को FIR दर्ज करना जरूरी है।जहाँ  प्रारंभिक जांच की गुंजाइश सिर्फ उन्हीं मामलों तक सीमित है, जिसमें प्राप्त सूचना से यह स्पष्ट नहीं होता कि संज्ञेय अपराध हुआ है या असज्ञेय। इसके बाद यह जांच सिर्फ सूचना से संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध घटित होने का पता चलने तक सीमित रहती है। यहाँ यह वताना भी महत्वपूर्ण होगा कि दण्ड प्रकिया संहिता 1860(IPC) की नई धारा 166A (अपराध विधि संशोधन कानून के जरिए जोड़ी गई), उस पुलिस अधिकारी या लोकसेवक को दंडित करने की बात करती है जो IPC धारा 326A 326B 354, 354B 370A. 376, 376A,376B, 376C, 376D, 376E या 509और POCSO Act 2012के तहत किए गए अपराध या इन धाराओं के तहत आने वाले अपराधों को करने के प्रयास की FIR दर्ज करने में नाकाम रहा हो या उसने चूक की हो। IPC की धारा 166A में न्यूनतम 6 माह की सजा दी जा सकती है जो कि बढ़ा कर 2 वर्ष  तक का कारावास और जुर्माना से भी दण्तित किया जायेगा। ऐसे मामले में जांच भी महिला पुलिस उपनिरीक्षक(Sub-Inspector) के द्वारा की जाएगी। ऐसी नियुक्त महिला पुलिस उपनिरीक्षक(Sub-Inspector) तुरन्त घटना स्थल पर अपनी टीम के साथ पहुँचेगी और जाँच की प्रक्रिया को आरम्भ करगी।”दुष्कर्म की जांच कैसे होती है” के महत्वपूर्ण बिन्दु  निम्नलिखित प्रकार से समझाये जा सकते है-

  • यदि आवश्यकता  हो तो ही  पीड़िता और अभियुक्त की चिकित्सीय जांच की जाएगी,दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 161 में गवाहों केअहस्ताक्षरित बयान दर्ज करना।
  • आप इस धारा में बयान दर्ज कराते समय FIR  को और विस्तार से बता सकती हैं।,
  • अगर जरूरत हो तो अभियुक्त को गिरफ्तार करना और पुलिस रिमांड लेकर उससे हिरासत में पूछताछ करना अपराध से जुड़ी सामग्री बरामद करना।
  • दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष गवाहों के बयान दर्ज कराना (भारतीय दण्ड संहिता ( IPC) की धारा 354, 354A, 354B, 354C, 354D, उपधारा ( Sub-Section) (1) या (2), धारा 376, 376A. 376B, 376D, 376E, या 509और POCSO Act 2012  के तहत होने वाले अपराध में पीड़िता का यह बयान दर्ज करना अनिवार्य है) ताकि वे धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए अपने बयान साक्ष्य में पुष्ट कर सकें।
  • मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के तहत दिया गया बयान, धारा 161 के तहत दर्ज कराए गए बयान से विपरीत नहीं होना चाहिए। बचाव पक्ष का वकील आपका केस खराब करने के लिए बयान में विरोधाभास दिखाने की कोशिश करेगा, इसलिए बयान देते समय एकदम स्पष्ट रहे।
  • कभी-कभी, अभियुक्त(Accused) स्वेच्छा से दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 164 में मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है वह अपराध स्वीकृति अभियुक्त और सह -अभियुक्तों को फंसाने वाले  (इनक्रिमिनेटिंग) साक्ष्य का हिस्सा होगी जो उसके और सह-अभियुक्तों के खिलाफ इस्तेमाल हो सकता है।
  • सम्बधित केस से जुड़ी सभी सामग्री और दस्तावेजों की तलाशी, जप्ती  करना ,
  • जरूरी सावधानियां बरतते हुए संबध्दित सामग्री को फोरेंसिक जांच के लिए भेजना और विशेषज्ञ की राय एकत्र कर उसे पुलिस रिपोर्ट के साथ अदालत में पेश करना ।

“दुष्कर्म की जांच कैसे होती है”कि कुछ निश्चित अपराधों में विशेष प्रक्रिया का पालन होता है, जो इस प्रकार है:

  1. धारा 161 का बयान महिला पुलिस अधिकारी दर्ज करेगी भारतीय दण्ड संहिता ( IPC) की धारा 354, 354A, 354B, 354C, 354D, उपधारा ( Sub-Section) (1) या (2), धारा 376, 376A. 376B, 376D, 376E, या 509और POCSO Act के तहत हुए अपराध में दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 161 में पीड़िता का बयान महिला पुलिस अधिकारी या महिला अधिकारी दर्ज करेगी। पुलिस महिला को उसके घर के अलावा किसी अन्य स्थान पर पूछताछ के लिए आने को बाध्य नहीं कर सकती । दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 161 के बयान अहस्ताक्षरित होते हैं।
  2. दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 164 में बयान दर्ज करने की अनिवार्यता पीडिता का बयान दण्ड प्रक्रिया सहिता 1973 की धारा 164 में मजिस्ट्रेट के द्वारा दर्ज किया जाना अनिवार्य है। अगर पीडिता अस्थायी या स्थायी तौर पर शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है तो मजिस्ट्रेट इसके लिए दुभाषिये या विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति की मदद ले सकता है। बयान की वीडियो रिकार्डिंग होनी चाहिए ताकि ऐसे मामले में विचारण के दौरान उसे पीड़िता के इक्जामिनेशन इन चीफ (मुख्य परीक्षा) के रूप में लिया जा सके।
  3. बिना देरी के चिकित्सीय परीक्षण व इलाज.भारतीय दण्ड संहिता ( IPC) की धारा 326A,धारा 376, 376A. 376B, 376D, 376E, और POCSO Act के तहत हुए अपराध की पीडित को इलाज या प्राथमिक उपचार देने में देरी करना दंडनीय अपराध है। पीड़िता का चिकित्सीय परीक्षण उसकी सहमति या उसकी तरफ से सहमति देने में सक्षम व्यक्ति की सहमति से किया जाएगा।
  4. जांच के दौरान पीडित के द्वारा पुलिस को की गई मदद का रिकॉर्ड  रखना चाहिए, पुलिस स्वतंत्र है वह पीडित द्वारा दिए गए हर सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं है। हालांकि, अगर पीडित के पास इस बात का रिकॉर्ड होगा कि पीडित ने कैसे पुलिस की मदद की और उसने कैसे सुसंगत सामग्री को नजरअंदाज किया तो पीडित के उस सामग्री को ट्रायल के दौरान अदालत में पेश कर सकती है। सुझाए गए गवाहों के नाम, केस प्रोपर्टी की बरामदगी के लिए दिए गए सुराग रखें। अगर जांच अधिकारी पीडित के द्वारा दिए गए सुझाव व प्रस्ताव खारिज कर दें तो बिना देरी किए पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचे और सुधार के उपाय की मांग करें।

“दुष्कर्म की जांच” में क्या पीडित चिकित्सीय जांच कराने से इन्कार कर सकती है?

हां, पीडित को चिकित्सीय परीक्षण कराने से इन्कार करने का अधिकार है। हालांकि, अगर पीडित  12 वर्ष से कम आयु की बच्ची है तो पीडित के माता-पिता, संरक्षक (और इनकी अनुपस्थिति में चिकित्सक)पीडित की ओर से  चिकित्सीय परीक्षण के लिए सहमति देंगे।

 “दुष्कर्म की जांच “में साक्ष्य एकत्र करने के लिए चिकित्सीय परीक्षण कैसे होती है?

जब चिकित्सीय परीक्षण के लिए पीडित को डॉक्टर के समक्ष लाया जाता है तब डॉक्टर पीडित से कुछ प्रश्न पूछेंगे जो कि पीडित को परेशान करने वाले प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन घटना का इतिहास दर्ज करने के लिए वे आवश्यक हैं। जैसे कि:

  • यौन हिंसा की घटना की तारीख, समय और जगह का ब्योरा। घटना का पूरा इतिहास। घटना का इतिहास बताने में परेशान न हों, क्योंकि अगर ब्योरा दर्ज नहीं हुआ तो यह आपकी गवाही को कमजोर कर सकता है।
  • यौन हमले के बाद की जानकारियां, जैसे क्या आपने कपड़े बदले, स्नान, मूत्र त्याग, मल त्याग, फुहारें लीं. गुप्तांग धोएं, मुंह का कुल्ला किया. खाया पिया (मुख के जरिये यौन हिंसा में पूछा जाएगा, क्योंकि इन गतिविधियों का साक्ष्य एकत्र करने में प्रभाव पड़ता है। ये गतिविधियां साक्ष्य नष्ट कर सकती हैं।
  • अगर वीर्य (सीमन) का पता लगाने के लिए योनि से नमूना लिया गया है तो परीक्षणकर्ता रिकॉर्ड के लिए पूछेगा कि आपने बीते सप्ताह आखिरी बार कब सहमति से यौनाचार किया था।

“दुष्कर्म की जांच “में साक्ष्य एकत्र करने के लिए होने वाले चिकित्सीय परीक्षण में निम्न बातें भी शामिल होंगी-

  1. चिकित्सीय परीक्षण के लिए पीडित की सहमति लेना डॉक्टर चिकित्सीय परीक्षण, इलाजऔर साक्ष्य एकत्र करने के लिए पीडित की सहमति लेगा। अगर आप 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची हैं तो आपके माता-पिता या संरक्षक से सहमति ली जाएगी।
  2. चोट का लिखित ब्योरा डॉक्टर यौन हिंसा से आई चोटों का पता लगाने के लिए आपके शरीर के अंगों की जांच करेगा (जैसे कि रक्तस्राव, सूजन, छूने से पीड़ा (अंदरूनी चोट), स्राव आदि चोटे)। चोट का विस्तृत ब्योरा जैसे आकार, जगह, आकृति, रंग दर्ज किया जाएगा।
  3. विवेचना में मदद के लिए फोरेंसिक साक्ष्य भी एकत्र किए जा सकते हैं इसमें कपड़े हटाना और अलग करना, सिर के बाल, शरीर में बाहरी तत्व, लार, यौनांगों के बाल, योनि, गुदा और मुंह से लिए गए नमूने व रक्त का नमूना लेना।
  4. टू फिंगर टेस्ट (दो अंगुलियों से किया जाने वाला परीक्षण) कानून के खिलाफ है और इसे भारत का सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक घोषित कर चुका है। दुष्कर्म के अपराध में इस बात का कोई मतलब नहीं है कि आप यौनाचार के अभ्यस्त हैं कि नहीं। योनि के भीतरी हिस्से की जांच सिर्फ चोटों का पता लगाने या इलाज के मकसद से की जाएगी। ।Lillu @Rajesh & Anr. V/s State of Haryana 2013, the SC observed that “ The two finger test and its interpretation violates the right of rape survivors to privacy, physical and mental integrity and dignity” यह Judgment Indiankanoon से आप के पढने के लिए लिया गया है
  5. डॉक्टर यह राय नहीं दे सकता कि दुष्कर्म हुआ है या नहीं। यौन हिंसा हुई है या नहीं। यह कानूनी मुद्दा है न कि चिकित्सीय जांच का मेडिकल रिपोर्ट में सिर्फ चिकित्सीय जांच के नतीजे दर्ज किए जाने चाहिए।

 Read Judgment

“दुष्कर्म की जांच” में अगर पीडित अशक्त है, तो डॉक्टर को निम्न दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए।

  • पीडित को साधारण भाषा में जरूरी जानकारी दी जाएगी (जैसे कि क्या प्रक्रिया होती है, इस प्रक्रिया को करने का क्या कारण है, इसमें क्या खतरा और असुविधा हो सकती है) और अन्य जानकारी इस तरह दी जाएगी कि वह आपको आसानी से समझ में आ सके।
  • पीडित को फैसला लेने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।
  • पीडित को फैसला लेने और सहमति देने के लिए मित्र या सहयोगी या देखभाल करने पाने की मदद उपलब्ध कराई जाएगी और उनका निर्णय डॉक्टर को बताया जाएगा। पॉक्सो कानून की धारा 27 (2) के तहत अगर पीडिता 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की है तो विकित्सीय परीक्षण महिला चिकित्सक करेंगी।

“दुष्कर्म की जांच” में पीडिता चिकित्सीय मदद चाहती है लेकिन केस नहीं दर्ज करना चाहतीतो क्या ऐसा संभव है?

  1. मुफ्त इलाज लेना पीडित का अधिकार है। अगर आप दुष्कर्म पीडिता हैं, तो सभी निजी व सरकारी अस्पताल मुफ्त में तत्काल प्राथमिक उपचार या इलाज उपलब्ध कराएंगे (Cr.P.C  की धारा 357C)। आपराधिक विधि संशोधन कानून 2013 के बाद से अस्पताल प्रभारी चाहे वह सरकारी अस्पताल का हो या निजी अस्पताल का इलाज मुहैया न कराने पर कारावास की सजा का भागी होगा। एक वर्ष तक का कारावास या जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है (IPC धारा 166B)। Cr.P.C की धारा 357 C के मुताबिक दुष्कर्म का अपराध होने की सूचना पुलिस को देना सभी अस्पतालों और डॉक्टरों का वैधानिक कर्तव्य है।
  2. POCSO कानून की धारा 19(1) के तहत सभी लोगों (जिसमें डॉक्टर व अस्पताल शामिल हैं)का कानूनी दायित्व है कि वे किसी बच्ची से हुए दुष्कर्म या यौन अपराध की सूचना पुलिस या S.J.P.U (Special Juvenile Police Unit)  को दें। चाहे आप बालिग महिला हों या बच्ची या दुष्कर्म पीड़ित बच्ची के माता-पिता अथवा संरक्षक, अगर आप अपराध की सूचना पुलिस को नहीं देना चाहते तो आप अस्पताल या डॉक्टर को सूचित करेंगे। आपका इन्कार करना कानून के मुताबिक पुलिस( Local Police) or  S.J.P.U को सूचित किया जाएगा।
  3. हालांकि, ध्यान रहे, ऐसी स्थिति भी आ सकती है जिसमें संबंधित पक्ष पीड़ित के इन्कार पर विचार करने की स्थिति में न हो जैसे कि अगर पीड़ित को जानलेवा चोट लगी है  तब सूचना देने और अपराधी के खिलाफ कार्रवाई करने के कर्तव्य के सामने पीड़ित का निजता का अधिकार समाप्त हो जाता है। चोट मानवघाती आत्मघाती, जानलेवा या किसी और प्रकार की हो सकती है। ऐसी स्थिति में आपको पुनर्वास के लिए सलाह या सामाजिक सेवा का प्रस्ताव दिया जा सकता है।
  4. अगर पीड़ित बच्ची हैं और पीड़ित के माता-पिता या संरक्षक पीड़ित से यौन दुर्व्यवहार कर रहे हैं तब आपको सलाह (काउंसलिंग) के लिए भेजा जा सकता है और बाल कल्याण समिति (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी) भी ले जाया जा सकता है।ऐसी चरम स्थिति में, आपकी सहमति हो या न हो, पुलिस / एस. जे. पी. यू.( Local Police) or  S.J.P.U) जरूर कार्रवाई करेंगे।

“दुष्कर्म की जांच” पूरी होने के बाद अगला कदम क्या होता है ?

  • जांच पूरी होने के बाद पुलिस रिपोर्ट दाखिल करती है और तब जांच संपन्न हो जाती है। जब पुलिस अपनी रिपोर्ट में अभियोजन नहीं चलाए जाने की सिफारिश करती है तो उसे “फाइनल रिपोर्ट’ कहा जाता है और जब पुलिस अभियोजन चलाए जाने की सिफारिश करती है तो उसे चार्जशीट (आरोपपत्र) कहा जाता है। अपराध की पड़ताल के लिए ट्रायल की शुरुआत होती है।
  • अगर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल होती है अगर पुलिस किसी अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन न चलाने की सिफारिश करती है या एक भी आरोप खत्म करने की पेशकश करती है तो आपके पास मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना मामला पेश करने और पुलिस की सिफारिश का विरोध करने का अधिकार है। मजिस्ट्रेट पुलिस की सिफारिश  को खारिज कर सकता है अगर रिकॉर्ड पर अभियुक्त को दोषी साबित करने वाले दस्तावेज या सामग्री मौजूद है (जैसे कि दोषी साबित करने वाला Cr.P.C. की धारा 161 के तहत दर्ज बयान और पुलिस डायरी में दर्ज दस्तावेज)।
  • जब चार्जशीट में किसी व्यक्ति के अपराध में शामिल होने का पता चलता है, लेकिन उसे अभियुक्त न बनाया गया हो lतो मजिस्ट्रेट संज्ञान लेते समय सिर्फ उन्हीं लोगों को सम्मन भेजने के लिए बाध्य नहीं है जिनके लिए पुलिस ने सिफारिश की हो। वह उन लोगों को भी सम्मन कर सकता है। चार्जशीट पढ़ने से अपराध में जिनकी भूमिका परिलक्षित होती है। इसलिए जब चार्जशीट के साथ दाखिल की गई तथ्य सामग्री से किसी के खिलाफ मामला बनता हो और पुलिस ने उसे अभियुक्त न बनाया हो तब पीड़िता मजिस्ट्रेट से उसे अभियुक्त के तौर पर शामिल करने और मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी पेशी के लिए प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध कर सकती हैं।
  • आगे जांच के लिए अनुरोध अगर की गई जांच की पुलिस रिपोर्ट को देखकर पता चलता है या वैसे भी लगता है कि कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर  विल्कुल भी  ध्यान नहीं दिया गया है या फिर उसमें कुछ नए तथ्य है तो मजिस्ट्रेट पीड़िता को सुनने के बाद आगे जांच के आदेश दे सकता है और उसके पूरा होने पर उचित कार्रवाई के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष एक अतिरिक्त रिपोर्ट दाखिल हो सकती है। अगर चार्जशीट के आधार पर केस में अभियुक्त पर पूरी तरह शिकंजा नहीं कसता तो पीड़ित प्राइवेट शिकायत दाखिल करने पर भी विचार कर सकती है। ऐसी स्थिति में, पीड़ित प्राइवेट इन्क्वायरी के जरिए पुलिस जांच की अनुपूरक (सप्लीमेंट) बन कर अदालत के सामने अतिरिक्त साक्ष्य पेश कर सकती हैं।

ट्रायल Trial  कब प्रारम्भ  होता हैः

“दुष्कर्म की जाँच होने के बाद,ऐसी महिला पुसिस अधिकारी Charge Sheet (आरोपपत्र) को Chief Judicial Magistrate or Chief Metropolitan Magistrate में  दाखिल  करता है फिर ऐसा Magistrate मामले को Session Court में सपुर्द  करेगा।और Session Court इससे मामले को अपने पास या Additional Session Court सुनबाई के लिए देगा । जब ऐसा मामला Session Court या Additional Session Courtको मिलता है तब Session Court  या Additional Session Court मामले में Charge की  वचाव  के लिए तारीख देगा और  वचाव पक्ष के वकील द्वारा Charge पर वहस को सुनेगा कि अभियुक्त पर Charge नहीं वनता है और इसे वरी करदिया जाए। जबकि लोकअभियोजक वहस करते है कि  कि Charge Sheet  (आरोपपत्र) में परियाप्त साक्ष्य है औरअभियुक्त को वरी नहीं किया जा सकता है।तो  Session Court या Additional Session Court अभियुक्त  के विरुद्ध Charge Frame कर देगा और Trial प्रारम्भ किया जाता है और Trial में सभी गवाह होने के बाद में Final Argument के लिए ऐसा मामला लगाया जाता है । फिर Final Argument को सुनने के बाद Hon’ble Court अपना फैसला (Judgment) सुनाते है और तथ्य एवंम परिस्थितियों व साक्ष्य के आधार पर  अभियुक्त को बरी या सजा सुनाई जाती है।

निष्कर्षः

इस लेख के माध्यम से हम ने सरल भाषा में  “दुष्कर्म की जांच कैसे होती है”? या दुष्कर्म की जांच कैसे  की जाती है? के बारे में विस्तार से जाना है और क्रमवद्ध तरीक से  जांच की पूरी प्रक्रिया को बताया गया हैऔर जांच महिला पुलिस अधिकारी कैसे करगी और  चिकित्सीय परीक्षण कैसे होता है की प्रकिया को भी बताय गया है मुझे आशा है यह जानकारी आप को अच्छी लगी होगी जो निश्चित ही आप के ज्ञान को बढाने में मद्द करगी और जांच के विषय में एक  नयी समझ को बढागा।यहाँ तक पढने को लिए आप का बहुत बहुत धन्नयवाद। ऐसे ही और लेख के लिए https://lawarticles.inको Login करे।

FAQ:

Q1:दुष्कर्म की जांच कैसे होती है?

Ans: रेप केस में डॉक्टर चिकित्सीय परीक्षण करता, इलाजऔर साक्ष्य एकत्र करने के लिए पीडित की सहमति लेगा। अगर आप 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची हैं तो आपके माता-पिता या संरक्षक से सहमति ली जाएगी।डॉक्टर चिकित्सीय परीक्षण में चोट का लिखित ब्योरा लिखेगा और डॉक्टर यौन हिंसा से आई चोटों का पता लगाने के लिए पीडिता के शरीर के अंगों की जांच करेगा (जैसे कि रक्तस्राव, सूजन, छूने से पीड़ा (अंदरूनी चोट), स्राव आदि चोटे)। चोट का विस्तृत ब्योरा जैसे आकार, जगह, आकृति, रंग दर्ज किया जाएगा।विवेचना( Investigation) में मदद के लिए फोरेंसिक साक्ष्य भी एकत्र किए जा सकते हैं इसमें कपड़े हटाना और अलग करना, सिर के बाल, शरीर में बाहरी तत्व, लार, यौनांगों के बाल, योनि, गुदा और मुंह से लिए गए नमूने व रक्त का नमूना लेना।  भारत में सुप्रीम कोर्टने  टू फिंगर टेस्ट कोअसंवैधानिक घोषित कर दिया है।

Q2:वैवाहिक दुष्कर्म क्या होता है? (What Is Marital Rape)?

Ans:यदि पति अपनी पत्नी की सहमति के बिना या पत्नी  इच्छा के विरुद्ध  पति उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाता है, तो ऐसे शारीरिक संबंध को वैवाहिक दुष्कर्म या Marital Rape कहा जाता है। 

Q3:टू-फिंगर टेस्ट होता क्या है? – 

Ans:टू फिंगर टेस्ट(दो अंगुलियों से किया जाने वाला परीक्षण) एक मेडिकल टेस्ट होता है। यह टेस्ट बलात्कार पीड़िता पर किया जाता है इस टेस्ट में डॉक्टर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डालता हैं इससे डॉक्टर ये पता लगाने की कोशिश करता हैं कि महिला के साथ बलात्कार  हुआ है या नहीं या पीड़िता यौनाचार में अभ्यस्त हैं कि नहीं। क्योंकि बलात्कार के दौरान हाइमन झिल्ली  टूट या फट जाती है जिसकी जांच  इस टेस्ट के द्वारा की जाती है।

Q4: क्या भारत में टू फिंगर टेस्ट अवैध है?

Ans: Lillu @Rajesh & Anr. V/s State of Haryana 2013 केस  से ही भारत में सुप्रीम कोर्ट ने  टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया हैऔर 2022 के सुप्रीम कोर्ट आदेश  के अनुसार यदि कोई डॉक्टर टू फिंगर टेस्ट करता है तो उसका लाइसेन्स रद्द हो सकता है।

Q5: रेप किट क्या होती है ?

Ans: रेट किट के माध्यम से लिए गये सैम्पल की मदत से DNA से सम्बध्ति सबूतोम को  72 घंटे के अंदर  जुटाया जा सकता है।अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में  रेप पीड़िता की जांच रेप किट के माध्यम  से होती है। इस किट में  कई डिब्बियो अलग-अलग  होती है  जिनकी मदद से पीड़िता का स्वाब सैम्पल,वीर्य सैम्पल, बालसैम्पल, कोई चोट के सैम्पल को लिया जाता हैऔर जांच के लिए भेजा जाता है। इस किट के माध्यम से पीड़िता के अधिकारों का विशेष ध्यान दिया जाता है।

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