दोस्तो आप का स्वागत है आज हम इस लेख में जानेगे कि FIR दर्ज करने का प्रोसेस और नागरिकों के क्या अधिकार है?पढें इससे जुडी जानकारी । FIR से संबध्तित जुड़े महत्वपूर्ण नियम क्या हैइसके बारे में सभी भारतवासी को पता होना चाहिए।य़दि पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से इन्कार कर दे तो आपको क्या करना चाहिए । F.I.R को सहिंता में परिभाषित नहीं किया गया। समान्यत: F.I.R. का मतलब (First Information Report) होता है,इसे हिन्दी में प्राथमिकी कहा जाता है। साधारण शब्दों में कहा जाये तो F.I.R अपराध होने के बाद की प्रथम सूचना या शिकायत है जो अपराध होने के बाद निकटतम थाने के पुलिस अधिकारी को दी जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जब कोई अपराध किया गया हो और ऐसा अपराध कानून की भाषा में संज्ञेय अपराध हो और ऐसे किसी संज्ञेय अपराध की सूचना या शिकायत( लिखित व मौखिक) जब थाने में पुलिस अधिकारियों को दी जाती है तब वह पुलिस अधिकारी उस संज्ञेय अपराध की सूचना या शिकायत का सार अपने चिक रजिस्टर लिखेगा (यदि सूचना या शिकायतमौखिक है तोपुलिस अधिकारी स्वंम उसे लेखबध्द करगा) और उस रिपोर्ट की एक कोपी शिकायतकर्ता को निशुल्क दी जायेगी। यह रिपोर्ट ही-प्रथम सूचना रिपोर्ट कहलाती है यह अपराध का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है और इसी FIR के तथ्यों से पुलिस अधिकारी जान पाता है कि किया गया अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय है यदि संज्ञेय अपराध किया गया है तो पुलिस अधिकारी आपराधिक मामले की तुरन्त जांच कर सकता है और बिना वारण्ट के किसी भी अपराधी को गिरफतार कर सकता है। य़दि मामला असंज्ञेय है पुलिस अधिकारी तुरन्त जांच करने से मना सकता है। इससे यह कहा जा सकता है कि FIR जांच का पहला कदम होता है लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जहां पुलिसअधिकारी FIRदर्ज नहीं करता है दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्याय-12 धारा 154-176 प्रावधान दिये गये है। धारा-154 संज्ञेय अपराध की इत्तला के बारे में है जबकि धारा-155 असंज्ञेय अपराध की इत्तला और ऐसे मामले का अनवेषण के बारे में है । कौन साअपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय है यह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की अनुसूची-1 के खण्ड-4 मे दिया गया है । यहॅा हम विस्तार से जानने का प्रयास करेगे कि FIR दर्ज करने का प्रोसेस और नागरिकों के क्या अधिकार है।
प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) किसे कहते हैं ?
FIR उस प्रथम सूचना रिपोर्ट को कहते हैं जिसे संज्ञेय अपराध की जानकारी रखने वाला कोई व्यक्ति Cr. P.C. की धारा 154 के तहत पुलिस को देता है। यह लिखित रूप में दी जा सकती है या फिर मौखिक तौर पर पुलिस अधिकारी को दी जा सकती है।FIR पर सूचना देने वाले के हस्ताक्षर होने चाहिए।प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस को अपराध घटित होने के तथ्यों के बारे में सूचना देना जरूरी है। प्रक्रिया विधि के तहत पुलिस अपराध दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर सकती है।संज्ञेय अपराध में FIR अवश्य दर्ज करना चाहिए यह एक महत्वपूर्ण निणर्य है “Lalita Kumari vs Govt.Of U.P.& Ors on 27 February, 2012 “ / यह Judgment आपके पढने के लिए Indiankanoon से लिया है।
मैं प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) कैसे दर्ज कराऊं ?
FIR दर्ज करने का प्रोसेस और नागरिकों के क्या अधिकार और इससे जुडी जानकारी दी गयी है प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने के लिए कृपया निम्न कदम उठाएं:
- जहां तक संभव हो, पीड़ित स्वयं प्राथिमिकी दर्ज कराए कानून में कोई भी व्यक्ति जिसे संज्ञेय अपराध घटित होने की समुचित जानकारी हो, प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा सकता है टूटी-फूटी जानकारी, सुनी-सुनाई बातें या उडती चर्चा से पर्याप्त सूचना नहीं मिलती।
- सामान्य तौर पर एक मामले में सिर्फ एक ही FIR होती है और FIR के तथ्य मुकदमे के विचारण में पुष्टि योग्य होने चाहिए। इसलिए सुझाव दिया जाता है कि जहां तक संभव हो पीड़ित को स्वयं FIR दर्ज करानी चाहिए, ताकि सभी जरूरी तथ्य दिए जा सके।
- पुलिस के पास पहुंचने में देर न करें ।अपराध के मामलों में देरी से FIR दर्ज कराने के आधार पर आपका केस खारिज नहीं होगा। फिर भी अपराध घटित होते ही जल्द से जल्द पुलिस के पास पहुंचे। अगर FIR दर्ज कराने में देरी हुई है तो पुलिस को देरी का कारण बताएं। अपराध की जल्दी सूचना देने से आपका केस मजबूत होगा।
- अनिवार्य प्रथम सूचना रिपोर्ट संज्ञेय अपराध में पुलिस को एफ. आई. आर. दर्ज करना जरूरी है। प्रारंभिक जांच की गुंजाइश सिर्फ उन्हीं मामलों तक सीमित है, जिसमे प्राप्त सूचना से यह स्पष्ट नहीं होता कि संज्ञेय अपराध हुआ है या असxज्ञेय। इसके बाद यह जांच सिर्फ सूचना से संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध घटित होने का पता चलने तक सीमित रहती है, न कि उसे प्रमाणित किया जाए।
- पुलिस को अपराध की सूचना दें, चाहे आपको ये न मालूम हो कि अपराध किस धारा में आता है। आपको अपने खिलाफ हुए अपराधों को जानने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है स्थानीय पुलिस के समक्ष जब अपराध के तथ्य पेश किए जाते हैं तो वह हमेशा निश्चित दंडनीय प्रावधान जोड़ लेती है।
- आपात स्थिति में आपको यह सुनिश्चित करने की जरूरत नहीं है कि अपराध संज्ञेय है।पुलिस को सूचित करने से पहले आपको यह जानने की जरूरत नहीं है कि अपराध संज्ञेय है या नहीं, तथ्यों की जानकारी होने पर जैसे ही संज्ञेय अपराध के होने का पता चलता है,पुलिस मामले की जांच करने के लिए बाध्य है। अगर आपके पास समय है, तो आप पुलिस को लिखित सूचना दें और पुलिस को लिखित सूचना देते समय शिकायत की प्रतिलिपि पर प्राप्ति का अनुमोदन ले लें ताकि पुलिस को सूचना देने के बारे में कोई विवाद न रहे।
- आपात स्थिति में नजदीक के थाने जाये, चाहें वह अपराध उस थाना क्षेत्र के तहत न भी घटित हुआ हो (इसे Zero FIR के नाम से जाना जाता है)। बाद में जांच स्थानीय क्षेत्राधिकार रखने वाले थाने को सौंप दी जाएगी।हालांकि यदि आपात स्थिति न हो तो आपको उसी थाने से संपर्क करना चाहिए जिसकेअधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ हो ताकि जांच में देरी न हो।
- जब भी तत्काल मदद की जरूरत हो पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन (112) करें जब भी संरक्षण, इलाज या बचाव के लिए आपको पुलिस की तत्काल मदद की जरूरत हो. आपको पहले पुलिस नियंत्रण कक्ष (PCR) को फोन करना चाहिए (न कि स्थानीय थाने को) PCRको किए गए फोन रिकॉर्ड होते हैं और आपात स्थिति में पीड़ित की रक्षा कर उसे चिकित्सीय जांच के लिए ले जाने या तत्काल हिंसा रोकने के लिए पुलिस टीम मौके पर भेजी जाती है। स्थानीय थाने को भी सूचना दी जाती है। PCR को किए गए आपके फोन का रिकॉर्ड रहता है, जिसका उपयोग आप Cr.P.C की धारा 156 (3) के तहत FIR दर्ज कर पुलिस जांच का निर्देश मांगने वाली मजिस्ट्रेट के समक्ष दी गई अपनी अर्जी में कर सकती है
FIR दर्ज करने के प्रोसेस में नागरिकों को क्या सूचना देनी चाहिए?
FIR दर्ज करने के प्रोसेस में और नागरिकों को और क्या -क्या बातों की जानकारी FIR में दी जानी चाहिए
- FIR में अपराध के (1) दिनांक, (2) समय और (3) स्थान का एकदम सही जिक्र होना चाहिए। अपराध के तरीके का भी जिक्र होना चाहिए, जिसमें अगर अपराध शरीर के खिलाफ हुआ है तो शरीर के उस भाग को भी शामिल करें जो जख्मी हुआ है और प्रयुक्त हथियार का भी जिक्र करें। इसके साथ ही अगर जानते हो तो अपराधी का नाम बताएं और अपराध के गवाह व्यक्तियों के नाम भी दें और यह ब्योरा आपकी चिकित्सीय जांच या अभियुक्त की चिकित्सीय जांच के दौरान पुष्ट हो सकता है।
- अभियुक्त का नाम न मालूम होने की स्थिति में उसकी पहचान किए जाने लायक पर्याप्त ब्योरा दें, अगर ब्योरा उपलब्ध हो तो देना चाहिए। जैसे कि उम्र, लिंग (पुरुष या स्त्री). शारीरिक गठन या चेहरे आदि के पहचान चिन्ह, अथवा बातचीत के सामान्य तौर तरीके से हटकर बोलने का जो ढंग रहा हो बताएं। इसी तरह अगर कोई अनजान व्यक्ति अपराध का गवाह है तो उसकी पहचान करने लायक सूचना दी जानी चाहिए जिसे जांच के दौरान पुलिस पुष्ट कर सके। FIR में अभियुक्त के खिलाफ दंडात्मक कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई होनी चाहिए।
- आपका ब्योरा, पुलिस को अपना पता और मोबाइल नंबर देना चाहिए ताकि यह संकेत जाए कि आप पुलिस की मदद करने की इच्छा रखते हैं।अगर उपलब्ध हो तो FIR में अभियुक्त का पूरा ब्योरा देना चाहिए ताकि उसकी पहचान हो सके, लेकिन उसे पकड़े जाने या गिरफ्तार किए जाने की जानकारी FIR का हिस्सा होना जरूरी नहीं है।
- आपात स्थिति में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने दंडनीय धाराएं बताई हैं कि नहीं. अगर आपको कानून और दंडनीय धाराएं मालूम हैं तो आप FIR में उन्हें शामिल कराने के लिए पुलिस से उनका जिक्र कर सकते हैं। अगर आपके पास समय है और आप पुलिस के पास जाने से पहले वकील या कानूनी सलाह ले सकते हैं तो आपको यह ब्योरा पता कर लेना चाहिए। हालांकि आपसे ये उम्मीद नहीं की जाती कि आपको विभिन्न दंड धाराएं मालूम होंगी और आप इसका पता लगाने में अतिरिक्त समय न लगाएं। एफ. आई. आर. में अपराध की धाराएं आपके वास्तविक बयान के आधार पर शामिल की जाती हैं और जब आपका बयान पूरा हो जाता है तो पुलिस या फिर मजिस्ट्रेट भी अभियुक्त को रिमांड पर भेजते समय उस पर लागू होने वाले विशिष्ट सही और पूर्ण दंडनीय प्रावधानों का जिक्र करता है।
- एफ. आई. आर. में बढ़ा-चढ़ा कर या गलत बयान नहीं देने चाहिए। विचारण के दौरान आपसे जिरह होगी और बढ़ा चढ़ा कर कही गई बात या गलत बयान, यहां तक कि छोटा सा मुद्दा भी आपके मुकदमे के लिए घातक साबित हो सकता है।
- जहां तक संभव हो एफ आई आर में घटना का विस्तृत ब्योरा होना चाहिए। एफ.आई.आर. में तथ्यों का विस्तार से उल्लेख करें क्योंकि एफ.आई.आर. दर्ज कराने के बाद आपके बयान में आया बदलाव, यहां तक कि थोड़ा सा भी अंतर. विरोधाभास माना जाएगा।
क्या में पुलिस में FIR दर्ज करने के प्रोसेस के बाद अतिरिक्त ब्योरा दे सकता हूं?
अगर FIR दर्ज करने के प्रोसेस और नागरिकों के अधिकार है में अपराध के बारे में सारा ब्योरा नहीं दिया गया है तो आप Cr.P.C. की धारा 164 के अलावा धारा 161 के तहत बयान दर्ज करा सकती है और उसमें घटना का समग्र रूप से पूरा विस्तृत ब्योरा दे सकती हैं। FIR में अगर अपराध का सही ब्योरा दर्ज नहीं है तो उसे ठीक कराने का कानून में कोई उपाय नहीं है। एक ही विकल्प संभव है कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में रिट दाखिल की जाए। हाईकोर्ट से Cr.P.C की धारा 482 के तहत सन्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पूर्ण न्याय के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया जा सकता है। हालांकि FIR को सही कराने के लिए हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में जाने से पैसा और समय दोनों ज्यादा लगेंगे। पीडित को ऐसी स्थिति में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से मिलने की सलाह दी जाती है। वरिष्ठ अधिकारी चाहे तो-
(i) विचार कर सकता है कि क्या किसी सुधार की जरूरत है;
(ii) अधीनस्थ को निर्देश दे सकता है कि वह इस तरह जांच करें कि एफ.आई.आर. में हुई गलती या नहीं दी गई जानकारी का नकारात्मक प्रभाव कम हो जाए.
(iii) जांच अधिकारी को जांच करने के अपने विशिष्ट अनुभव बता सकता है, और
(iv) पीडित का कानून लागू करने वाले तंत्र में विश्वास बढा सकता है।
आप FIR में दिए गए किसी भी बिंदु को Cr.P.C की धारा 161 के बयान में विस्तार से बता सकती हैं, लेकिन आप FIR में दर्ज बयान को बदले या ठीक नहीं कर सकता।
क्या FIR दर्ज करने के प्रोसेस में नागरिकों को हर अपराध के लिए अलग FIR दर्ज करानी होगी?
FIR दर्ज करने के प्रोसेस में नागरिकों को अपने ऊपर हुए हर अपराध के लिए अलग FIR दर्ज नहीं करानी होती है। एक क्रम में हुए सारे अपराध एक साथ दर्ज किए जा सकते हैं और उसकी एक साथ जांच हो सकती है। जैसे कि हिंसा के साथ आपराधिक अभित्रास (धमकी) भी शामिल हो सकती है। एक क्रम में हुए सभी अपराधों को एक साथ दर्ज कराने की अनुमति है चाहे उसमें सिर्फ एक ही अपराध संज्ञेय हो। अपराध के लिए उकसाना या प्रयास करना या उसकी साजिश की जांच भी उसी FIR का हिस्सा मानकर की जा सकती है।
अगर पुलिस FIR न दर्ज करे तो मेरे पास क्या विकल्प है?
आपकी शिकायत के बावजूद अगर पुलिस अधिकारी FIR दर्ज न करें तो आपको उनके फैसले की तत्काल जानकारी होनी चाहिए। FIR दर्ज न होने की स्थिति में आपके पास निम्न विकल्प है-
- वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के पास जाएं थाना प्रभारी के FIR दर्ज करने के प्रोसेस और नागरिकों के अधिकार है में FIR दर्ज करने से मना कर देने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति Cr.P.C की धारा 154 (3) के तहत पुलिस अधीक्षक के पास जा सकता है। वह सूचना के तथ्य लिखित में डाक के जरिए पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है, अधिकारी स्वयं मामले की जांच कर सकता है या अपने अधीनस्थ अधिकारी को जांच का आदेश दे सकता है। पुलिस अधीक्षक से मिलकर FIR दर्ज करने की जरूरत समझा सकता है।
- पुलिस जांच के लिए मजिस्ट्रेट का निर्देश पुलिस रिपोर्ट पर अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन शुरू करने का अधिकार रखने वाला मजिस्ट्रेट स्थानीय पुलिस को मामले की जांच का आदेश दे सकता है। पीड़ित मजिस्ट्रेट के समक्ष प्राइवेट शिकायत दाखिल कर Cr.P.C. की धारा 2 (d) के तहत अभियोजन पक्ष का स्थान लेकर अभियुक्त को अभियोजित (प्रॉसीक्यूट) कर सकता है। Cr.P.C की धारा 156 (3) के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करने की शर्त है कि घटित अपराध संज्ञेय होना चाहिए। ये ध्यान रखें कि मजिस्ट्रेट के समक्ष दी गई अर्जी के तथ्य, अगर स्वीकार हो गए तो FIR में तब्दील हो जाएंगे और इसलिए अपराध घटित होने का ब्योरा अर्जी दाखिल करने तक की तिथि का दिया जाना चाहिए।
- संज्ञान लेने से पहले विवेचना ( Investigation) के निर्देश मजिस्ट्रेट अपराध पर संज्ञान लेने से पहले Cr.P.C. की धारा 156 (3) की शक्ति का इस्तेमाल कर सकता है। कहने का मतलब है कि मजिस्ट्रेट पुलिस को विवेचना का आदेश दे सकता है या जांच के उद्देश्य से सर्च वारंट जारी कर सकता है।
- संज्ञान लेने के बाद Cr.P.C. की धारा 202 में जांच का निर्देश अगर मजिस्ट्रेट सी.आर.पी.सी. की धारा 190 में अपराध पर संज्ञान ले लेता है तो वह
(a) प्रक्रिया शुरू करने का मुद्दा टाल कर स्वयं मामले की जांच पड़ताल कर सकता है।
(b) पुलिस अधिकारी को विवेचना Investigation का आदेश दे सकता है या
(c) किसी अन्य व्यक्ति को जांच करने का आदेश दे सकता है।
5.हालांकि अगर अपराध विशेष तौर पर सत्र अदालत द्वारा विचारणीय है तो संज्ञान लिए जाने के बाद की स्थिति में मजिस्ट्रेट पुलिस जांच का आदेश नहीं दे सकता।
6. जबकि यह जरूरी है कि संज्ञेय अपराध की सूचना पर पुलिस FIR दर्ज करेगी, लेकिन संभव है कि FIR दर्ज करने की औपचारिकताएं न पूरी की जाएं, इसलिए ध्यान रखें कि आप FIR दर्ज करने के प्रोसेस और नागरिकों के अधिकार है में FIR दस्तावेज के अंत में हस्ताक्षर करें। अगर शिकायतकर्ता अनपढ़ है।तो वे सुनिश्चित करें कि FIR में दर्ज ब्योरा उसे पढ़ कर सुनाया जाए । प्रभारी FIR में अपना नाम और पद जोड़ेगा; और आपको FIR की एक प्रति देगा।
मैं प्राइवेट कंप्लेंट (निजी शिकायत) कैसे दाखिल करूं?
निजी शिकायत दाखिल करते समय निम्न बातें ध्यान रखें निजी शिकायत पर क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट संज्ञान ले सकता है।
- मित्र या संबंधी भी निजी शिकायत दाखिल कर सकते हैं पीडित को शिकायतकर्ता बनने की जरूरत नहीं है। कोई भी व्यक्ति जिसके पास जरूरी सामग्री और जानकारी है शिकायत दाखिल कर सकताहै। पीड़ित अदालत में एक गवाह के तौर पर साक्ष्य देने के अलावा, शिकायतकर्ता के रूप में अन्य कानूनी दायित्व निभाने से बच सकतe है।
- स्थानीय पुलिस की प्रतिक्रिया बतानी होगी अगर आवेदनकर्ता पहले स्थानीय पुलिस के पास जा चुका है और पुलिस ने FIR दर्ज करने से मना कर दिया है तो ये बात बतानी होगी।
- क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट का न्यायिक क्षेत्राधिकार स्पष्ट रूप से निश्चत होना चाहिए। जब भी अपराध घटित हो आप स्थानीय माने के किसी भी अधिकारी से पूछ सकते हैं कि यह मामला किस मजिस्ट्रेट के न्यायिक क्षेत्राधिकारमेंआएगा।
- बताएं संज्ञेय अपराध घटित हुआ है अर्जी में संज्ञेय अपराध घटित होने का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए और उसके समर्थन में जो भी सामग्री है वह अर्जी के साथ दाखिल करें।
- समर्थन में हलफनामा दें क्योंकि यह फैसला मजिस्ट्रेट का होगा कि वह Cr.P.C. की धारा 156 (3) के तहत दी गई अर्जी पर आवेदनकर्ता या अन्य गवाहों के बयान दर्ज किए बगैर स्थानीय पुलिस को मामले की जांच का आदेश दे कि नहीं, इसलिए अर्जी में कही गई बातों की सत्यता के प्रति अदालत को भरोसा दिलाने के लिए अर्जी के समर्थन में अपना हलफनामा लगाएं।
- स्पष्ट हो अभियोजन का केस शिकायत में दिया गया अभियोजन का पूरा मामला स्पष्ट होना चाहिए। उसमें FIR से ज्यादा ब्योरा दिया जाना चाहिए। अभियोजन के मामले में संज्ञेय अपराध के घटित होने का पता चलना चाहिए। शिकायत में यह विशेषतौर पर बताया जाए कि मामले के कौन से भाग को किस साक्ष्य के जरिये साबित किया जाएगा।
- गवाहों और दस्तावेजों की सूची मजिस्ट्रेट के समक्ष गवाहों को बुलाने और दस्तावेजों को पेश करने के लिए दो सूचियां दी जानी चाहिए। (1) गवाहों की (2) समर्थन में पेश किए जाने वाले दस्तावेजों की।
निर्ष्कष-
FIR दर्ज करने का प्रोसेस और नागरिकों के अधिकार है के बार में संबध्तित महत्वपूर्ण नियम क्या है इसके बारे में सभी व्यक्तियों को पता होना चाहिए।FIR कैसे लिखी जानी चाहिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए यदि पुलिस अधिकारी क्या में पुलिस में FIR दर्ज कराने के बाद अतिरिक्त ब्योरा दे सकता हूं।क्या मुझे अपने ऊपर हुए हर अपराध के लिए अलग FIR दर्ज करानी होगी।FIR दर्ज करने से इन्कार कर दे तो आपको क्या करना चाहिए।मैं प्राइवेट कंप्लेंट (निजी शिकायत) कैसे दाखिल करूं। FIR के बारे में अतिमहत्वपूर्ण सूचना को बहुत विस्तार से बताया गया है।
FAQ:
Q:FIR में क्या क्या लिखा जाता है?
Ans: FIR लिखने में अपराध के (1) दिनांक, (2) समय और (3) स्थान का एकदम सही जिक्र होना चाहिए। अपराध के तरीके का भी जिक्र होना चाहिए, जिसमें अगर अपराध शरीर के खिलाफ हुआ है तो शरीर के उस भाग को भी शामिल करें जो जख्मी हुआ है और प्रयुक्त हथियार का भी जिक्र करें। इसके साथ ही अगर जानते हो तो अपराधी का नाम बताएं और अपराध के गवाह व उपस्थित व्यक्तियों के नाम भी दें। यदि अभियुक्त का नाम न मालूम होने की स्थिति में, उसकी पहचान किए जाने लायक पर्याप्त ब्योरा दें, अगर ब्योरा उपलब्ध हो तो देना चाहिए। जैसे कि अभियुक्त की उम्र, लिंग (पुरुष या स्त्री). शारीरिक गठन या चेहरे आदि के पहचान चिन्ह, अथवा बातचीत के सामान्य तौर तरीके से हटकर बोलने का जो ढंग रहा हो बताएं। इसी तरह अगर कोई अनजान व्यक्ति अपराध का गवाह है तो उसकी पहचान करने लायक सूचना दी जानी चाहिए जिसे जांच के दौरान पुलिस पुष्ट कर सके। FIR में अभियुक्त के खिलाफ दंडात्मक कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई होनी चाहिए।
Q:FIR करने में कितना पैसा लगता है?
Ans FIR करने में कोई पैसा नहीं लगता है यह निशुल्क होती है जबकि FIR करने के बाद शिकायतकर्ता को FIR की कोपी निशुल्क दी जाती है।
Q:एफ आई आर दर्ज होने के बाद क्या होता है?
Ans: संज्ञेय अपराध में FIRदर्ज होने के बाद, पुलिस विवेचना ( Investigation) करने के लिए कानूनी की तरफ से बाध्य होती है पुलिस तुरन्त घटना स्थल पर पहुचकर विवेचना ( Investigation) प्रारभ्म करगी, घायल व्यक्तियों को इलाज के लिए अस्पताल पहुचाएगी और संम्बधित अपराध के सभी साक्ष्य एकत्रित करगी, और उनका घायल व्यक्तियों का बयान लिखगी व घटना स्थल के प्रतियक्षदर्शी के बयान लिखगी, कोई हथियार यदि घटना स्थल पर पडा मिलता है तो उसे शील करेगी और सीजरमीमो तैयार करगी और फोरनसिक के लिए भेजेगा और यदि अपराधीगण वहॅा है तो उन्हें गिरफ्तार करगी और यदि अपराधीगण घटना स्थल से भाग गये है तो उनका पीछा करके गिरफ्तार करगी औरअपराधीगण को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगी।
Q:FIR कहां और कब दर्ज किया जाता है?
Ans: FIR कहां दर्ज की जाती है- जिस थाने के स्थानीय क्षेत्राधिकार में घटना घटित हुई हैऔर जब कोई संज्ञेय अपराध घटित हुआ हो तब FIR दर्ज की जाती है। तब इस बात की सूचना या शिकायत( लिखित व मौखिक) स्थानीय क्षेत्राधिकार रखने वाले थाने में पुलिस अधिकारी को दी जाती है तब वह पुलिस अधिकारी उस संज्ञेय अपराध की सूचना या शिकायत का सार अपने चिक रजिस्टर लिखेगा (यदि सूचना मौखिक है तो पुलिस अधिकारी स्वंम उसे लेखबध्द करगा) और उस रिपोर्ट की एक कोपी शिकायतकर्ता को निशुल्क दी जायेगी।
Q: जीरो FIR कब दर्ज की जाती है?
Ans: आपात स्थिति है तो नजदीक के थाने जाये, चाहें वह अपराध उस थाना क्षेत्र के तहत न भी घटित हुआ हो तो इसे Zero FIR के नाम से जाना जाता है।कानून में जब कोई संज्ञेय अपराध घटित होता है तो संज्ञेय अपराध की FIR किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है ताकि जांच में देरी न हो सके और इसमें अपराध संख्या नहीं लिखी जाती है बाद में जांच स्थानीय क्षेत्राधिकार रखने वाले थाने को सौंप दी जाएगी।