सुखाधिकार का इतिहास ।(History of Easement Right):-
सुखाधिकार का इतिहास (History of Easement Right) भी उतना ही प्राचीन है जितना की मानव सभ्यता का इतिहास।सुखाधिकार (Easement Right) कैसा अधिकार है, जिस का उद्भव ( Origin) उस काल (Time) में हुआ, जब मानवजाति ने प्रथम बार अपनी बर्बरता से ऊपर उठकर पड़ोसियों (Neighbors) के रूप में एक-दूसरे के साथ रहना प्रारंभ किया। तभी मानवजाति ने एक दूसरे के अधिकारों का आदर ( Respect of rights) करना प्रारंभ किया।
सुखाधिकार (Easement right)अचल संपत्ति के स्वामित्व (Owner) का एक आवश्यक परिणाम है और ऐसे ही मनुष्य ने यह निश्चित किया कि वह सभी को संपत्ति के ऊपर बिना हस्तक्षेप स्वामित्व का अधिकार मिलना चाहिए। उसी समय से उन्होंने यह भी आवश्यक समझा कि प्रत्येक मनुष्य अपनी संपत्ति का इस प्रकार से प्रयोग करें कि उससे उसके पड़ोसियों के द्वारा अपनी संपत्ति के प्रयोग में किसी भी प्रकार की बाधा न पहुंँचे और इसी सिद्धांत के आधार पर सुखाधिकार की नींव पड़ी।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग की अपेक्षा करता है। वह यह चाहता है कि कोई भी व्यक्ति उसकी संपत्ति व संपत्ति संबंधी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करें। प्रारंभ में जब मनुष्य जंगली एवं बर्बर था, तब न तो उसका कोई परिवार था और ना ही कोई समाज। यह स्वच्छंद जीवन -यापन करता था। उसकी कोई व्यक्तिगत संपत्ति ही नहीं होती थी। वह प्रकृति की गोद में ही जन्म लेता और पलता तथा मर जाता था। उसका समाज के प्रति न तो कोई कर्तव्य था और ना ही कोई अधिकार लेकिन धीरे-धीरे सभ्यता का विकास हुआ और जब मनुष्य सामाजिक होने लगा और एक सभ्य समाज का प्रादुर्भाव हुआ और इसी के साथ-साथ मनुष्य में निजी संपत्ति के प्रति मोह व स्वार्थ की भावना जागृत हुई। तब मनुष्य एक परिवार के रूप में रहने लगा, एक परिवार से अनेक परिवार बने एवं अनेक परिवारों से ग्राम व अनेक ग्रामो से नगर के रूप में धारण किया।
यही से सुखाधिकार (Easement right)के अधिकारों की उत्पत्ति होती है। जब अनेक व्यक्ति पास-पास मकान बनाकर रहने लगे तो उसका ध्यान सुख सुविधाओं की ओर आकर्षित हुआ उन्होंने यह सोचा कि सभी व्यक्ति अपनी अपनी मकानों व संपत्ति का इस प्रकार प्रयोग करें कि वे दूसरों के लिए बाधा न बने । उदाहरण के लिए :-कोई व्यक्ति दूसरे की भूमि पर पानी नहीं गिरा ए उसकी तरफ खिड़की नहीं खोले उसकी भूमि पर कोई निर्माण नहीं करें इत्यादि और यह आवश्यक भी था यदि ऐसा नहीं होता तो कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति व भूमि मकान का स्वतंत्रता पूर्वक उपयोग नहीं कर सकता था। आगे चलकर यही सुखाधिकार(Easement right) कहलाया।
मध्यकालीन समय में सुखाधिकार । Easement in medieval age
सुखाधिकार (Easement right) सुख-सुविधा, परस्पर हित एवं उपयोगिता का आधार है। यदि हम इतिहास का अवलोकन करें तो हमें आभास होता है कि भारत में सूखाधिकार(Easement right) का अधिकार अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित है ।हिंदू व मुस्लिम काल में भी सुखाधिकार (Easement right) के अधिकारों को मान्यता प्राप्त थी लेकिन उस समय सुखाधिकार(Easement right) के कोई निश्चित नियम नहीं थे। उस समय इन अधिकारों का प्रयोग परस्पर हित एवं उपयोगिता के आधार पर किया जाता था।
लेकिन भारत में अंग्रेजों का शासन स्थापित हुआ तो सुखाधिकार(Easement right) की विधि में एक नया मोड़ आया ,अंग्रेजी सत्ता ने सुखा अधिकार के संबंध में आंग्ल विधि (English Law) का कानून लागू किया। यहां के मुंबई, मद्रास तथा कोलकाता आदि प्रेसिडेंसी नगरों में उच्च एवं सर्वोच्च न्यायालय स्थापित किए गए और उन्हें प्रत्येक मामले में आंग्ल विधि( English Law) को लागू करने के निर्देश दिए गए। जहां किसी मामले के प्रतिवादी (Defendant) हिंदू या मुस्लिम विधि व्यक्ति होते तो वहां उनकी व्यक्तिगत विधि ( Personal Law) का प्रयोग किया जा सकता था। लेकिन कभी-कभी ऐसे मामले भी आ सकते थे जिसके बारे में न तो कोई प्रथा ( Custom) थी और न ही अधिनियमित विधि ( Legislative Law) तो ऐसे ही अवस्था में आंग्ल विधि के सिद्धांत ( Principle of English Law) को लागू किया जा सकता था। सामान्यतः इन सिद्धांतों को साम्य, न्याय तथा शुद्ध अन्त:करण (Equity Justice and Good Conscience) के सिद्धांत पर आधारित समझा जाता था
धीरे-धीरे इसने अधिनियमित विधि( Legislative Law) का रूप दिया जाने लगा। सर्वप्रथम सन 1871 में अवधि अधिनियम पारित किया गया जिसमें सुखाधिकारों ( Easement rights) को मान्यता दी गई। इसके कुछ समय बाद अर्थात सन 1877 में एक और अधिनियम पारित किया गया जिसने सन 1871 के अधिनियम (Act)को विस्थत (Supersede) कर, प्रथम बार व्यक्तियों को स्वत्व संबंधी वैधानिक अधिकार (Legal Right) प्रदान किए और संपत्ति के संबंध में उनके सुखाधिकारों ( Easement right) को निश्चित कर दिया।
लेकिन यह अधिनियम भी अपने आप में पूर्ण नहीं था । जिसमें अधिकारों को केवल निर्धारित किया गया था लेकिन उसमें स्पष्ट एवं विस्तृत व्याख्या नहीं थी अतः इस कमी को दूर किया जाना आवश्यकता था। फिर कुछ विधिशास्त्री सुखाधिकार (Easement Right) संबंधी बिल को परिभाषित करने, उसमें संशोधन करने एवं उसे संहिता बद्ध करने के पक्ष में थे इसी उद्देश्य को लेकर सन 18 82 में “भारतीय सुखाधिकार अधिनियम” पारित किया गया, जिसने सुखाधिकार(Easement right) एवं अनुज्ञप्ति (License) संबंधी विधि को परिभाषित एवं संशोधन कर एक निश्चित रूप दान किया गया।
सुखाधिकार विधि की यात्रा । Journey Law of Easement Right
सुखाधिकार विधि ( Law of easement right) की यात्रा अत्यंत लंबी है प्रारंभ में सन 1871 में सुखाधिकार के अधिकारों को विधिक मान्यता प्रदान की गई है तत्पश्चात सन 1877 में एक और अधिनियम बनाया और उसी का स्थान पर इस वर्तमान अधिनियम के लिए वर्तमान अधिनियम को “भारतीय सुखाधिकार अधिनियम 1882″( Indian Easement Act1882 का नाम दिया गया है तथा 1 जुलाई 1882 से यह अधिनियम प्रभाव में आया। वर्तमान अधिनियम में प्रारंभिक शीर्षक वाले अध्याय में कुल 6 अध्याय और 64 धाराएं।
यह अधिनियम भूतलक्षी(Retrospective) नहीं है। यह अधिनियम सन 1882 से पूर्व अर्जित अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है यह अधिनियम मद्रास कुर्ग तथा मध्यप्रदेश में 1 जुलाई सन् 1882 मैं लागू हुआ एवं उत्तर प्रदेश, मुंबई तथा दिल्ली में इसे सन 1891 से विस्तारित किया गया।
यहां यह उल्लेखनीय है कि जहां पर यह अधिनियम लागू नहीं होता है वहां उन मामलों में साम्य, न्याय तथा शुद्ध अन्त:करण (Equity Justice and Good Conscience) के सिद्धांत लागू होंगे और इस सिद्धांत को “पांचूगोपाल बरुआ वनाम उमेशचंद्र गोस्वामी ए आई आर 1997 एस सी 1041” के केस में अपनाया गया।
PANCHUGOPAL BARUA & ORS. Vs. UMESH CHANDRA GOSWAMI & ORS.