Permanent Injunction

 

दोस्तो आप का स्वागत https://lawarticles.in है, आज हम Permanent Injunction or Perpetual Injunction क्या होता है। इसे हिंन्दी स्थाई व्यादेश या शास्वत व्यादेश, आज्ञापक व्यादेश, कहा जाता है । इस लेख में हम सरल भाषा में स्थाई व्यादेश या शास्वत व्यादेश, आज्ञापक व्यादेश का क्या अर्थ तथा प्रकृति व प्रकार को पढेगे और क्या स्थाई व्यादेश के स्थान पर या उसके अतिरिक्त क्षतिपूर्ती की माँग की जा सकती हैं और Permanent Injunction कब देने से इंन्कार किया जा सकेगा तथा नकारात्मक करार के पालन का व्यादेश का भी, इस के माध्यम से जानेगे का प्रयास करेगे। Injunction एक Preventive Remedy है जो व्यथित पक्षकार को दिया जाता है किसी दूसरे पक्षकार के गलत Act के खिलाफ न्यायलय द्वारा दिया जाता है। जिससे कि आगे के नुकसान से Plaintiff को बचा जासके। यह आदेश साम्या के आधार पर दिया जाता है Permanent Injunction के माध्यम से प्रतिवादी को हमेशा के लिए कुछ करने से रोक दिया जाता है या कुछ करने के लिए कहा जाता है। भारत में Permanent Injunction के कानून को  विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम ,1963 के भाग तीन निवारक अनुतोष से सम्बन्धित है इस भाग-3 में निम्नलिखित दो अध्याय है।-(i) अध्याप – 7 [धारा – 36 तथा 37 ] व्यादेश सामान्यतः सिद्धान्त पर।जबकि (ii) अध्याय-8 (धारा-38-44) Permanent Injunction (शस्वत या स्थाई व्यादेश) यहां बताना आवश्यक है कि धारा-43, तथा धारा 44 को निरसित किये जा चुके हैं और आज के समय में केवल अध्याय-8 में (धारा-38-42) तक ही धाराऐं है।

Permanent Injunction meaning  स्थाई व्यादेश का क्या अर्थ

Injunction (व्यादेश) पद की कोई वैधानिक परिभाषा उपलब्ध नहीं है। सामान्य अर्थ में व्यादेश एक न्यायिक आदेशिका (Judicial Process) है। इसके द्वारा बाद के किसी पक्ष को (प्रात: प्रतिवादी को) कुछ करने से निषिद्ध किया जाता है या कुछ करने से निर्देशित किया जाता है Injunction (व्यादेश) एक वैवेकीय उपचार है। अत: व्यादेश की मांग साधिकार नहीं की जा सकती। यह एक असाधारण उपचार है। यह बाद के लम्बन के दौरान या बाद के निस्तारण के समय अनुदत्त किया जा सकता है। Permanent Injunction को बाद के निस्तारण के समय और Decree pass करते समय अनुदत्त किया जाता है। प्रतिवादी को पूरी तरह से रोक दिया जाता है या कुछ करने के लिए कहा जाता है।

Permanent Injunction in CPC:

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 में Permanent Injunction के बारे में  कोई प्रावधान  नहीं है । Permanent Injunction स्थाई व्यादेश, विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम ,1963 अध्याय -8 (धारा38-42) से प्रशासित है और यह व्यादेश निषेधाज्ञात्मक या सकारात्मक हो सकता है ।

Suit for Permanent Injunction

Permanent Injunction के दावे में दूसरे पक्ष को पूरी तरह से रोक दिया जाता है। जहॅा Plaintiff किसी सम्पत्ति का मालिक हैऔर अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए  Defendant के खिलाफ कोर्ट  में केस लासकता हैऔर Plaintiff को यह दर्शाना होगा कि मैं इस सम्पत्ति का मालिक हॅू और Defendant गलत कार्य कर रहा है इस रोका जाय। य़हॅा न्यायालय पहले Defendant के Notice करेगा और Plaintiff के दावे का Defendant से जवाव माॅगेगा । दोनो parties को Evidence के लिए कहेगा उसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद Court Decree pass करेगी और यदि Defendant गलत पाया जाता है तो उसे पूरी तरह से रोक दिया जाता है।

 Kind of Injunction ।व्यादेश के प्रकार।

व्यादेश का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है

1.अवधि के अनुसार

(i) अस्थाई या अन्तरिम या मध्यवर्ती व्यादेश,

(ii) स्थाई पा शास्वत व्यादेश,

2.प्रक्रति के अनुसार

(i)निषेधाज्ञात्मक व्यादेश या निषेधाज्ञा,

(ii)समदेशात्मक व्यादेश या निषेधाज्ञा,

Temporary Injunction अस्थाई व्यादेश- (आदेश-39 CPC) से प्रशासित हैं जबकि अध्याय -7 धारा 37(1) विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम ,1963 में सामान्य परिभाषा दी गयी है।  Permanent Injunction स्थाई व्यादेश, विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम ,1963 अध्याय -8 (धारा38-42) से प्रशासित है व्यादेश निषेधाज्ञात्मक या सकारात्मक हो सकता है सकारात्मक व्यापेश अर्थात आज्ञापक व्यादेश किसी पक्षकार को किसी कार्य के पालन हेतु या किसी कार्य को करने हेतु वाध्य कहा करता है जबकि निषेधाज्ञात्मक व्यादेश में किसी पक्षकार को कोई कार्य करने से रोकता है

 

Temporary Injunction (अस्थाई व्यादेश) धारा-37 (1) read with Order39 CPC:

भाग-3 के अध्याय -7 की धारा 36, विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम,1963 के अनुसार- निवारक अनुतोष  न्यायालय के विवेकानुसार अस्थायी या शाश्वत व्यादेश द्वारा किया जाता है। अध्याय -7 की धारा-37(1) के अनुसार – Temporary Injunction (अस्थाई व्यादेश) ऐसे होते है जिन्हें विर्निदिष्ट समय तक या न्यायालय के अतिरिक्त आदेश तक बने रहता है तथा वे वाद के किसी भी प्रक्रम में अनुदत्त किए जा सकेगे और सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 द्वारा विनियमित होता है। दूसरे शब्दों में- विर्दिष्ट समय तक या न्यायालय के अग्रिम आदेशोंतक जारी रहता है वाद के किसी भी चरण पर अनुदत्त किया जा सकता और यह C.P.C द्वारा विनियमित होता है।

Permanent Injunction or Perpetual Injunction ।स्थाई व्यादेश [धारा-37(2) read with धारा-38-42 S.R. Act]

यह  निवारक अनुतोष अस्थायी या शाश्वत व्यादेश द्वारा न्यायिक विवेक के अधीन अनुदत्त  किया जाता है। स्थाई व्यादेश वाद के गुण दोष पर सुनवाई के पश्चात पारित आज्ञप्ति द्वारा ही अनुदत्त किया जा सकता है। इसके द्वारा प्रतिवादी को स्थाई रूप से किसी अधिकार का दावा करने या वादी के अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य कसे से रोका जाता है धारा-37(2)

Permanent Injunction or Perpetual Injunction when grant  ।स्थाई या शाश्वत कालीन व्यादेश कब अनुदत्त किया जाता है[धारा-38 S.R. Act]

विनिशिष्ट अनुरोध अधिनियम1963 कs अध्याप 8 (धारा 38-42) स्थाई या शाश्वत कालीन व्यादेश से सम्बंधित है स्थाई व्यादेश, वादी के पक्ष में विधमान किसी आभार के अंग के निवारण हेतु अनुदत्त किया जा सकता है। [धारा-38(1)]

यदि संविदीप आधार से सम्बन्धित मामला है। तो न्यायालय अध्याय-2 (धारा-25) से निर्देशित होगा। अध्याय-2 संविदा के विनिदिष्ट अनुपालन से सम्बन्धित है। [धारा-38(2)]

यदि प्रतिवादी, वादी के सम्पत्तिक अधिकार का उल्लंघन करता है या उसका खतरा उत्तपन्न करता है या उपभोग पर आक्रमण करे या आक्रमण की धमकी देता है तब न्यायालय निम्नलिखित दशाओं में स्थाई व्यादेश जारी कर सकेगा। [धारा-38(3)]

(i) जहां कि प्रतिवादी, वादी के लिए, उस सम्पत्ति का न्यासी हो,

(ii) जहां कि सम्भावित वास्तविक क्षति के आवधारण का कोई मानक न हो,

(iii) जबकि आर्थिक क्षतिपूर्ति पर्याप्त अनुतोष न हो,

जबकि वादों की बहुलता को रोकने के लिए व्यादेश आवश्यक हो।

 Mandatory Injunction ।आज्ञापक व्यादेश। (धारा-39)

वादी के पक्ष में विद्यमान आभार के ढंग के निवारण हेतु किहीं कृत्यों का पालन आवश्यक होने पर (जबकि न्यायलय ऐसे पालन को प्रवर्तित करने में समर्थ हो)तब न्यायालय स्वविवेक से निम्नलिखित  प्रयोजन हेतु आज्ञापक व्यादेश जारी कर सकता है।

(i) भंग के निवारार्णथ (Prevent to breach)

(ii)अपेक्षित कृत्यों का पालन वाध्य करने हेतु ।

Damage in Lieu of or in Addition to Injection   व्यादेश के स्थान पर या व्यदिश के अतिरिक्त क्षतिपूर्ति [धारा-4०]

(1) Permanent Injunction शाश्वत व्यादेश या Mandatory Injunction आज्ञापक व्यादेश के बदले में या उसके अलावा क्षतिपूर्ति का दावा किया जा सकता है

(2) क्षतिपूर्ति का दावा वादपत्र में किया जाना चाहिए यदि वादपत्र में क्षतिपूर्ति की याचना नहीं भी गयी ही तो न्यायालय क्षतिपूर्ति का उपचार नहीं देगा। वादपत्र में संशोधन की अनुमति दी जा सकती है। आवश्यक होने पर, आवश्यक अनुमति दी जायेगी)

(3)यदि वाद निरस्त कर दिया जाता है तो क्षतिपूर्ति का पृथक दावा पोषणीय न होगा

Injunction when refused व्यादेश कब नामंजूर किया जाता है [धारा-41]

व्यादेश अनुदत्त नहीं किया जा सकता–

(क) किसी व्यक्ति को किसी ऐसी न्यायिक कार्यवाही के अभियोजन से अवरुद्ध करने को जो ऐसे

बाद के, जिसमें व्यादेश ईप्सित है, संस्थित किए जाने के समय लंबित हो, जब तक कि ऐसा

अवरोध कार्यवाहियों के बाहुल्य को निवारित करने के लिए आवश्यक न हो;

(ख) किसी व्यक्ति को ऐसे न्यायालय में, जो उस न्यायालय के अधीनस्थ नहीं है जिससे व्यादेश ईप्सित है, किसी कार्यवाही को संस्थित या अभियोजित करने से अवरुद्ध करने को;

(ग) किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले में कोई कार्यवाही संस्थित या अभियोजित करने से अवरुद्ध करने को;

(ङ) ऐसी संविदा का भंग निवारित करने को जिसका विनिर्दिष्टतः पालन प्रवर्तनीय नहीं है:

(च) किसी ऐसे कार्य को न्यूसेंस के आधार पर निवारित करने को, जिसके संबंध में यह युक्तियुक्त

तौर पर स्पष्ट न हो कि वह न्यूसेंस हो जाएगा;

(छ) किसी ऐसे चालू रहने वाले भंग को निवारित करने को, जिसमें वादी उपमत हो गया हो;

(ज) जब कि समानतः प्रभावकारी अनुतोष, कार्यवाही के किसी अन्य प्रायिक ढंग द्वारा निश्चयपूर्वक अभिप्राप्त किया जा सकता हो सिवाय न्यासभंग की दशा के;

(छ) जबकि वादी या उसके अभिकर्ताओं का आचरण ऐसा रहा हो जो उसे न्यायालय की मदद पाने के लिए निर्हकित कर दे;

(ब) जबकि बादी का उस मामले में कोई वैयक्तिक हित न हो।

 

Injunction to Perform Negative Agreement नकारात्मक करार के पालन का व्यादेश-(धारा 42)

धारा 41 के खण्ड (ङ) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां कि किसी संविदा में किसी निश्चित कार्य को करने का सकारात्मक करार और उसी के साथ किसी निश्चित कार्य को न करने का अभिव्यक्त या विवक्षित नकारात्मक करार समाविष्ट हो वहां यह परिस्थिति कि न्यायालय सकारात्मक करार का विनिर्दिष्टतः पालन विवश करने में असमर्थ है न्यायालय को नकारात्मक करार पालन का व्यादेश अनुदत्त करने से प्रवारित नहीं करेगी।

परन्तु यह तब जबकि वादी संविदा के पालन में, जहां तक उसके लिए आबद्धकर है असफल न रहा हो।

निर्ष्कष-

Permanent Injunction स्थाई व्यादेश, विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम ,1963 अध्याय -8 (धारा38-42) से प्रशासित है व्यादेश निषेधाज्ञात्मक या सकारात्मक हो सकता है सकारात्मक व्यापेश अर्थात आज्ञापक व्यादेश किसी पक्षकार को किसी कार्य के पालन हेतु या किसी कार्य को करने हेतु वाध्य कहा करता है जबकि निषेधाज्ञात्मक व्यादेश में किसी पक्षकार को कोई कार्य करने से रोकता है यहां हमने धारा 38 में देखा कि स्थाई व्यादेश कब अनुदत्त किया जाता है और धारा40 स्थाई व्यादेश कब नामंजूर किया जाता है आज इस लेख में स्थाई व्यादेश का अध्ययन धाराओं के साथ किया गया है।

 

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