Temporary injunction

 

Temporary injunction

दोस्तो आप का स्वागत lawarticles.in में आज के लेख में हम Temporary injunction क्या होता है भारतीय विधि में कहॅं पर प्रावधान किया गया हैअस्थाई व्यादेश की क्या परिभाषा है औरसिविल प्रक्रिया संहिता के Order 39  क्या है और साथ ही साथ हम यह भी समझेगे कि Injunction   क्या होता है, इसके कितने प्रकार के होते हैं,और यह  कब  दिया जा सकता हैं ।  Injunction साम्या विधि पर आधारित सिध्दात है यह रोमन विधि से लिया गया सिध्दात है तद्पश्चत यह सिध्दात इंग्लिश विधि शामिल किया गया।  व्यादेश- इंजेक्शन को लीगल भाषा में बार बार सुना जाता है और कोर्ट में भी बार बार इसका प्रयोग भी किया जाता है यह सिविल के मामलों  में इसका प्रयोग अधिक किया जाता है  यह  एक प्रकार की  Prohibitive Remedy है जो कोर्ट के द्वारा जारी किया गया एक विधिक आदेश है जिससे किसी व्यक्ति या निगम को  विधिक के खिलफ कार्य  करने  से रोका जा सकता है या  किसी को विधिक कार्य  करने  के लिए  कहा जा सकता है। सामान्यत: यह  किसी सम्पत्ति को संरक्षित करने के लिये या यथास्थित बनाये रखने के लिये जारी किया जाता है। Injunction -व्यादेश -समादेश या निषेधाज्ञा इन शब्दों का  एक ही अर्थ है रोकना। यह दो प्रकार के होते है -(1) स्थाई व्यादेश समादेश या निषेधाज्ञा -Permanent or Perpetual Injunction (2) अस्थाई व्यादेश  समादेशया निषेधाज्ञा- Temporary Injunction । स्थाई व्यादेश  को Permanent Injunction कहा जाता है जिसे विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 38 से 42 के अर्न्तगत आता है ये सामान्यत: मेरिट के आधार पर दिया जाता है।यह केस खत्म होने पर  एक Decree में दिया जाता है। जबकि विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 37(1) अस्थाई व्यादेश, समादेश  या निषेधाज्ञा- Temporary Injunction  को बताया गया है  और यह सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की Order 39 Rule 1 से5 के अर्तगत दिया है। जबकि इसी  Order 39 Rule 6 से10  तक अन्तर्वती आदेश (Interlocutory order)  दिया गया है। येआदेश कब दिये जा सकते है। उदाहरण से समझने का प्रयास करेगे। उदाहरण के लिए-  A  और B दो व्यक्ति  हैं, यहाॅं  B , A मकान के सामने एक दीबार खडी कर रहा है जिससे A  को अपने घर से वाहर निकलने में बाधा उत्तपन्न होगी।  तो  यहाॅं A कोर्ट में B के ऐसे  गलत कार्य के खिलाफ केस लायेगा। अबयहाॅं कोर्ट A को सुनने और केस के साथ संलग्न दस्तावेज  का अध्धयन करने के बाद कोर्ट संतुष्ट होता है और कोर्ट को लगता है कि B गलत दीबार बना रह है तो  कोर्ट  B को ऐसे गलत कार्य करने से रोकने के लिए आदेश  को पारित  करेगा  जो एक अस्थाई व्यादेश- Temporary Injunction होगा क्योंकि अभी केस चल रहा हैॅ जब  कोर्ट merit के आधार पर केस को सुनकर, A के पक्ष में  Decree पारित करती है और B को ऐसे गलत कार्य करने से पूरी तरीके से रोकने का आदेश  पारित  करेगा तो ऐसे आदेश को  स्थाई व्यादेश या निषेधाज्ञा -Permanent or Perpetual Injunction  कहा जाता है । क्योंकि यह केस के खत्म होने पर ही दिया जा सकता है।

 Temporary Injunction Meaning:

भारतीय विधि के अनुसार- विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 भाग-3 अध्याय-7 की धारा 37(1) में  अस्थाई व शाश्वत व्यादेश,समादेश  या निषेधाज्ञा- Temporary Injunction  को बताया गया है  धारा 37(1) के अनुसार – “Temporary Injunction एक ऐसी निषेधाज्ञा है जिन्हें विनिदिष्ट समय तक या न्ययालय के अतिरिक्त आदेश तक बने रहना है तथा वो वाद के किसी भी प्रक्रम  में अनुदान किए जा सकेंगे और सिविल   प्रक्रिया संहिता 1908 की Order 39 Rule1 से 5 के  द्वारा  विनियमित हाते है।”

अन्य विशेशज्ञों कीअस्थाई व शाश्वत व्यादेश की परिभाषा निम्नलिखित है-

  •  किसी पक्षकार को कोई  कार्य  करने या न करने के आदेश देने वाली न्यायिक कार्यवाही है।
  •   यह किसी विशेष विशिष्ट आदेश है जिसके द्वारा न्यायलय ऐसे किसी अन्य  व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप या अहस्तक्षेप की धमकी देने से रोकने वाला आदेश है।
  • यह एक ऐसा विशिष्ट आदेश है जिसके द्वारा न्यायलय ऐसे किसी दोषपूण कार्य को, जो प्ररम्भ किया जा चुका है, जारी रखने से प्रतिवारित करने अथवा ऐसे कार्य की प्रारम्भ करने की धमकी को रोकने के लिये देता है।

 Temporary Injunction CPC: Temporary Injunction in CPC:

अस्थायी व्यादेश का मुख्य उद्देश्य किसी कार्यवाही के संस्थित किये जाने के समय की यथा-स्थिति (status quo) को बनाये और सुरक्षित रखना है तथा ऐसी कार्यवाही के अन्तिम विनिश्चय तक किसी परिवर्तन को रोकना है। Temporary Injunctionअस्थाई व्यादेश किसी  भी केस के लम्बित रहते हुये यथा-स्थिति (status quo) को बनाये रखने के लिये न्यायालय के  द्वारा जारी किये जाते है यह वादी एंव प्रतिवादी के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिये जाते है।

आदेश39 नियम 1 यथा-स्थिति (status quo)  का आदेश मुकदमे के किसी भी प्रक्रम पर जारी किया जा सकताहै । करने के पूर्व भी जारी किया जा सकताहै । यह  संमन जारी करने के पूर्व भी जारी किया जा सकता है। यहतब तक जारी रह सकता है जबतक न्यायलय द्वारा निरस्त नही कर दिया जाता “गंगा बाई वनाम सीता राम 1983 SC”- यदि ownership को लेकर विवाद प्रतिवादी विवादित जमीन पर आधे- आधो पर काबिज है और विवादित भूमि के सम्पूर्ण क्षेत्र पर निर्माण करने से रोकने के लिये न्यायालय  स्वत्व  के  अन्तिम निस्तारण तक अस्थाई व्यादेश जारी कर सकेगा।

आदेश 39  एंव  Section-94(c) के आधार पर आधार पर  व्यादेश जारी किया जा सकेगा-

(क)आदेश 39 Rule-1 के सन्दर्भ में :- मुकदमे के लम्बन के दौरान, किसी भी पक्षकार द्वारा न्यायालय के समक्ष  शपथपत्र या अन्य किसी  प्रार्थना पत्र दिये जाने पर, अस्थाई व्यादेश किसी भी पक्षकार के लिये  जारी  कर सकता हैं यदि किसी पक्षकार द्वारा सम्पत्ति व्ययनित या नष्ट या खराब कर दिये जाने  का खतरा हो तो अदालत अस्थाई व्यादेश जारी कर सकता है या डिकी के निष्पादन में सदोष विक्रय कर दिया जायेगा तो भी अदालत व्यादेश जारी कर सकेगा।

(ख) प्रतिवादी अपने लेन दारों को कपट वंचित करने के विचार से अपनी सम्पत्ति हटाने या व्ययनित करने करने की धमकी देता है या आशय रखता है

(ग) प्रतिवादी ‘वादी को विवाद ग्रस्त किसी सम्पत्ति से बेकब्जा करने या वादी को उस सम्पत्ति के सम्बन्ध में अन्यथा क्षति पहुंचाने की धमकी देता है ।उपरोक्त परिस्थित मे न्यायालय व्यादेश जारी कर सकेगा।

आदेश 39 Rule 2. के सन्दर्भ में :-

इसी प्रकार न्यायालय संविदा भंग होने से रोकने के लिये या अन्य किसी प्रकार को नुकसानी कारित होने से रोकने के लिये यह व्यादेश जारी कर सकेगा यह उस स्थित में भी जारी  कर सकेगा  यह  उस  स्थित में भी जारी किया जा सकेगा जहाँ पर  Temporary Injunctionअस्थाई व्यादेश की माँग कर रहे व्यक्ति द्वारा किसी नुकसानी का दावा न किया गया है।

धारा 94 (C) के सन्दर्भ में

यहाँ पर इस धारा के अन्तगत न्यायालय व्यादेश जारी करने के लिये को अस्थायी एक शक्ति दी गयी है न्यायालय का समाधान हो जाने पर अन्य किसी भी स्थित में धारा 94. के अंतर्गत व्यादेश जारी किया जा सकेगा।

न्यायालय उपरोक्त आधारो पर अस्थाई व्यादेश जारी करने के अलावा साम्या के सिद्धान्त  के आधारअस्थाई व्यादेश जारी कर सकता है भले ही संविधि में इसका उपचार।

न्यायालय निम्न तीन सिद्धान्तों  को ध्यान मे रख कर अस्थाई व्यादेश जारी कर सकेगा-
(क) प्रथम दृष्टया मामले का होना
(ख) अपूर्णनीय क्षति

(ग) सुविधा का सन्तुलन

(1) प्रथम दृष्टया मामले का होना(Prima Facie Casa):

वादी को यह दर्शाना होगा कि उसकेदावे  का  प्रथम दृष्ट्या मामला बनता है। न्यायालय को सन्तुष्ट  होना होगा  कि उसके समक्ष सुनवायी के समय विचारण के लिये एक गम्भीर प्रश्न है और तथ्यों को देखते हुये इस बात की सम्भावना है कि वादी अनुतोष पाने का अधिकारी है।अस्थायी व्यादेश जारी करते समय न्यायालय को मामले गुण दोष पर विचार नहीं करना होता है यहाँ न्यायालय से अधिकारों के सम्बन्ध में किसी निर्णय की अपेक्षा नही की जा सकती है। “लक्ष्मीकांत वी.पटेल वनाम ब. चेतनभट्ट शाह- AIR 2002 SC 275”– में न्यायालय को उस व्यादेश प्रदान करना पडता है जब उसे प्रदान करने का स्पष्ट वाद हेतुक सिद्ध होजाए। यह Judgment IndianKanoon से पढने के लिया है

Read Judgment

(2) वादी को अपूरणीय क्षति ( Suffer Irreparable Injury ):-

आवेदक को न्यायालय को इस बात से सन्तुष्ट कराना आवश्यक है  कि यदि व्यादेश जारी नहीं किया गया तो उसे अपूर्णनीय क्षति होगी। अपूरणीय क्षति से आशय एक ऐसे सावान क्षति से है जो नुकसानी या प्रतिकर द्वारा भरपाई नहीं हो सकतीहै।

(3) सुविधा और असुविधा का सिद्धान्त (Balance of convenience):

न्यायालय अस्थायी व्यादेश जारी  करते समय पक्षकारों की सुविधा काध्यान रखेगी। व्यादेश प्रदत्त न कियेजाने की स्थिति में वादी को प्रतिवादी की अपेक्षा अधिक क्षति होगी ।अस्थायी व्यादेश जारी करते समय देखना होगा कि वादी स्वयं में दोषी प्रतीत तो नहीं हो रहा है।सामान्यतः अस्थायी व्यादेश विरोधी पक्षकार को,नोटिस दिये जाने केबाद जारी किया जाना चाहिये लेकिन यदि न्यायालय उचित समझे तो नोटिस दियो बिना ही अस्थायी व्यादेश जारी कर सकता है।(order 39 Rule -3)
जहाँ आदेश 39 नियम 1के अतिगत शक्ति के प्रयोग में एक पक्षीय अन्तरिम व्यादेश जारी किया गया है वहाँ ऐसा आदेश अपील योग्य है
‘पक्षकार अपीलीय न्यायालय में जा सकता है या उसी न्यायालय से आदेश को रद्द करने या संशोधनकरने की माँग कर सकता है (ए. वेंकरा सुब्वैया नायडू बनाम एस० चैलप्पन (AIR 2000SC)

अस्थायी व्यादेश का प्रतिवादी द्वारा उल्लंघन तथा उपचार(Order 39 Rule -2क)

यदि अस्थायी व्यादेश का प्रतिवादी द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति को न्यायलय कुर्क कर सकेगा और अवधि एक वर्ष हो सकेगा तथा उसे सिविल कारावास में भेज सकेगा जिसकी अवधि तीन माह तक होगी।यदि इसके बाद भी अवज्ञा जारी रहती है तो न्यायलय   द्वारा  व्यक्ति की सम्पत्ति बेची जा सकती है तथा  नुकसानी के लिए  व्यायेशधारक  को प्रतिकर दिया जा सकता है।

फायदों की पुर्नप्राप्ति

जहाँ न्यायालय अस्थायी व्यादेश जारी किया है तथा उससे प्रतिवादी को  हानि  हुई है तो वहाँ न केवल न्यायालय को शक्ति होगी बल्कि उसका दायित्व होगा कि वह प्रतिवादी के नुकसानी को भरपायीअन्तिम निर्णय केसमय करें। “CIT बनाम विनोद कुमार 1987SC”-व्यादेश का दुरपयोग करता है तो उसे वे सभी लाभ वापस करने होंगे जो उसने अस्थायी व्यादेश से प्राप्त किये हैं। जहाँ वादी ने अपर्याप्त आधार पर व्यादेश प्राप्त कर लिया है तो न्यायालय उस पर Rs.  50000/रुपये तक जुर्माना करसकता है।

Order 39 Rule 4-

उचित आधार दिखाये जाने पर अपने  द्वारा जारी अस्थायी व्यादेश के परिवर्तन का अधिकार है तथा न्यायलय इसे अपास्त कर सकेगा यदि अपर्याप्तआधारपर प्राप्त किया गया है।

अस्थायी व्यादेश ऐसे मामलों में जारी नहीं किया जा सकता जहाँ प्रशसानिक असुविधा उत्पन्न हो जैसे-टैक्स जमा करने के मामले में लोक अधिकारी के स्थानान्तरण के मामले में “बाल्को इम्प्लाइज यूनियन बनाम पुनियन आफ इंडिया AJR 2००2SC”
एक पक्षीय अनुतोष व व्यादेश या स्थगन के रूप मे विशेष कर लोक परियोजना और स्कीम या  आर्थिक नीतियों या स्कीम के बारे में नहीं प्रदान किया जा सकता है।यह तभी दियाजा सकता है जब न्यायालय मान्य  कारणों से सन्तुष्ट है कि ऐसा न किये जाने पर अपूर्णयीय असुधार्य क्षति होगी। जहाँ एकपक्षीय अस्थायी व्यादेश जारी किया गया वहाँ व्यादेश जारी करने ‘के तिथि से 30दिन के भीतर प्रार्थना पत्न का निस्तारण किया जायेगा[आदेश 39 Rule 3A]

Stay Order, Status-Quo,Ex-parte Injunction, Ad Interim Relief क्या है-

Stay Order:

इसे appellate Court के द्वारा Trial Court के order पर दिया गया आदेश है जिससे Trial Court या किसी दूसरीCourt की कार्यवायी पर रोक लगाई जाती है।Appeal  के बीच के समय में पार्टी का नुकसान न हो तो ऐसी कार्यवायी को Stay कर देते है।

Status-Quo:

केस डालते समय Suit property या Right की जैसी स्थिति है वैसी ही बनी रहे।

Ex-parte Injunction:

जब कोर्ट प्रतिवादी को  नोटिस करने से पहले ही Injunction का आदेश दे देता है या प्रतिवादी को सुने बिना ही Injunction का आदेश  कोर्ट देता है तो वह Ex-parte Injunction कहलाता है।

Ad interim Relief :

जब plaintiff  केस डालता है और  Stay, Status-Quo, Ex-parte injunctionके Order pass  होने  में जो समय लगता है  उस समय के बीच उसके अधिकारों की रक्षा के ळिए तुरन्त उसी समय आदेश देना अनिवार्य है जिससे plaintiff के अधिकारों की  रक्षा हो सके।

अन्तरिम आदेश Interlocutory Order(आदेश 39 Rule-6-10)

अन्तरिम आदेश से तात्पर्य या न्यायालय द्वारा कार्यवाही या मुकदमे के दौरान दिये गये आदेश से है जो मुकदमे की विषय वस्तु को बनाये रखे जाने हेतु या उसी प्रकार से मामले को बनाये रखे जाने हेतु दिये जाते हैं।आदेश 39 Rule 6 – 10 अन्तरिम आदेशों के रूप में न्यायालय को किन्हीं सम्पत्तियों के विक्रय के लिये या मुकदमे की विषय- वस्तु को राजस्व के मामले में सम्पति के विक्रय या परिदान से सम्बंधित है। –

(i) अत्तरिम विक्रय का आदेश देने की शक्ति-  आदेश 39 Rule 6

Rule 6 के अन्तर्गत किसी भी ऐसी चल सम्पत्ति का विक्रय कराने हेतु आदेश दे सकता है या जो मुकदमे में की विषय वस्तु है या जो मुकदमे में निर्णय से पूर्व कुर्क की गयी हो या जो शीघ्र या स्वाभाविक रूप से नष्ट होने वाली हो या अन्य किसी न्यायोचित कारण से ऐसी      सम्पत्ति का विक्रय  काआदेश दे सकेगा। “वाद की विषय वस्तु के विरोध परिरक्षण संरक्षण

(ii)वाद का विषय-वस्तु का निरोध, परिक्षण, निरीक्षण आदि-आदेश 39 Rule 7

(क)न्यायालय  Rule 7  के तहत किसी सम्पत्ति के संरक्षण या निरीक्षण के लिये आदेश दे सकेगा न्यायालय किसी ऐसी सम्पत्ति को जो मुकदम की विषय वस्तु रही है या जिसके बारे में कोई प्रश्न विवादित उठाया जा सकता हो उसके  निरुद्ध परिरक्षण, निरीक्षण का आदेश दे सकेगा।

(ख) ऐसे बाद के किसी अन्य पक्षकार के कब्जे मे की भूमि या भवन में उपरोक्त किसी प्रयोजन के लिये किसी व्यक्ति को प्रवेश के प्राधिकृत कर सकेगा।

(ग) पूर्वोक्त सभी या किन्ही प्रयोपकों के लिये किन्ही नमूनों को लिया जाना हो या साक्ष्य लिये जाने हो तो इसके लिये किसी भी व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकता है।

(iii) ऐसे आदेशों के आवेदन सूचना के पश्चात किया जाएगा-आदेश 39 Rule 8 [नीटिस]

वादी द्वारा  उपरोक्त  नियमों 6 व 7  के अधीन आदेशों से पूर्व विपक्षी पक्षकार को नोटिस दिया जाना आवश्यक है परस्तु यहाँ यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि जहाँ न्यायालय की राय में ऐसी नोटिस दिये जाने से आदेश पारित करने का उद्देश्य ही विफल हो जायेगा या विफल होने की सम्भावना है तो न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश विपक्षी पक्षकार को नोटिस दिये बिना भी दिया जा सकता है।

(iv) जो भूमि वाद की विषय-वस्तु है उस पर पक्षकार का तुरन्त कब्जा कब कराया जा सकेगा आदेश 39 Rule 9

Rule -9के अन्तर्गत मुकदमे के किसी पक्षकार को भूमि का तंरत कब्जा प्रदत्त करने हेतु आदेश पारित कर सकती हैकोर्ट मुकदमे के किसी पक्षकार को तुरंत कब्जा दिलाने हेतु आदेशित कर सकती है। जहाँ सम्वन्धित भूमि से राजस्व की अदायगी थी तथा सरकारी राजस्व के भुगतान के  दायित्व के अधीन है अथवा न्यायलय ऐसे भूघ्रति जो मुकदमे का विषय है  जो विक्रय के अधीन है के कब्जे को भी किसी एक पक्षकार को प्रदत्त कर सकती है, ऐसा वहाँ उचित रूप से किया जा सकेगा जहाँ ऐसा पक्षकार उस Land या Tenure पर कब्जा रख रख था। सरकार को राजस्व या Tenure के Title Holder को भाटक देने में विफल हो और इसके परिणाम स्वरूप ऐसी भूमि का विक्रय आदेशित किया जाये वहाॅं Rule -9 के अन्तर्गत किसी अन्य पक्षकार द्वारा जो इस भूमि में हितबद्ध होने का दावा रखता हो विक्रय के पूर्व का शोध्य राजस्व या भाटक जमा कर दिये पर उसे उस भूमि का कब्जा तुरन्त दिया जायेगा।

Rule- 9 के अनुसार ऐसी भूमि का कब्जा न्यायालय के विवेकानुसार प्रतिभूति सहित या प्रतिभूति रहित दोनों प्रकार का हो सकता है। यहाँ न्यायालय Defaulter  के विरुद्ध इस प्रकार के भुगतान के लिये व्याज सहित डिक्री  पारित कर संकेगा।

(v) न्यायालय में धन ,आदि का जमा किया जाना-आदेश 39 Rule 10

जहाँ मुकदमे की विषय- वस्तु धनराशि रही है या अन्य कोई ऐसी वस्तु जो न्यायालय  में ऐसा पक्षकार परिदत्त की जा सकती है तथा जहाॅं मुकदमें में ऐसा पक्षकार  यह स्वीकार कर रहा है कि ऐसे धन या वस्तु किसी अन्य पक्ष के  न्यासी के रूप में धारित कर रहा है या यह कि वह वस्तु या धन राशि ऐसे अन्य पक्ष को शोध्य है तब न्यायालय उस वस्तु या उस धन को न्यायालय में जमा करने का आदेश दे सकेगा या न्यायालय ऐसी  वस्तु के सम्बन्ध में प्रतिभू के साथ या प्रतिभु के विना उसे आंशिक रूप से परिदत्त करने के लियेआदेशित कर सकता है।

निष्कर्ष-

इस लेख में आज Temporary Injunction(अस्थाई व्यादेश) को  विस्तार से समझा है साथ ही साथ विनिदिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के भाग-3 अध्याय-7 की धारा 37(1) में  परिभाषा  का अध्ययन कियाऔर साथ ही साथ सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की Order 39 Rule1 से 5  और Rule6 से 10 का विशेष अध्ययन किया है।इस ऑर्डर से जब मामला कोर्ट में Pending हो तब , कोर्ट किसी पार्टी को कुछ करने से रोक भी सकता है और कुछ करने के लिए भी कह सकता है, जब कोर्ट Defendant को “कुछ करने से रोक देता है” तो ऐसा आदेश “Prohibitory Injunction”  कहा जाता है। और जब कोर्टDefendant को “कुछ करने को कहता है”तो ऐसा आदेश “Mandatory Injunction”  कहा जाता है। Example-: A व्यक्ति का घर है, A के घर के मेन डोर के वाहर  B एक दीबार खड़ी कर रहे हैं और यदि B दीबार खड़ी कर लेता है तो ज़ाहिर सी बात है कि A अब अपने घर  के मेन डोर से बाहर नहीं निकल पाएंगा। अब जो B का ऐक्ट है इस के खिलाप A कोर्ट जाता है और अपने बाहर जाने का अधिकार है के बारे में और B के गलत दीवार खडी करने के  बारे में केस लाता है कि सर B को रोका जाए कि इस दीबार को खड़ा न करें।यहां कोर्ट से क्या मांग रहे हैं यहां  Court से  prohibitory injunction मांग रह है।  यह  एक  Temporary Injunction है और जब कोर्ट merit के अधार पर Decree पास  करता है और अब यहां कोर्ट B से कहेगा कि अब आप कोई दीवार नहीं बनायेगे और B को permanently रोका जाता हैतो इसको permanent Or Perpetual Injunction कहा जाता हैऔर  साथ ही साथ  कोर्ट  “कुछ करने का आदेश देता है जैसे- B से कहा जाता कि A के घर के मेन डोर के वाहर जो B ने दीबार खड़ी की है उसको तोडकर हटाए। तो इसे Mandatory Injunctionकहा जाता है।

Landmark Judgment on Temporary Injunction:

  1. “Dhrub Charan Parida V/s. State of Orissa & Ors, AIR 2003 Orrissa 219” (Short Note:  Suit for permanent injunction against State and other for restraining them from construction public road over his land- Petitioner is entitled to injunction).
  2. “Somnath Trust & Ors V/s. Jamunadas Madhanji International Ltd, AIR 2004 Gujarat 238 “(Short Note: Order 39 Rule1 CPC- Sub-lease injunction against his dispossession justified-Possession of sub-tenant found to be lawful- Prima Facie case made out).
  3. ” Mandoharamma Hotes and investment Pvt.Ltd V/s. Anma Hotels Lt& Ors, AIR2004 Madras344″ (Short Note: Order 39 Rule1 CPC-Application moved for grant of temporary injunction against defendant restraining him from interfering with applicant’s possession- Applicant was inducted into possession by defendants- Applicant is entitled to injunction).
  4. ” Tamil Nadu Newspring & Papers Ltd V/s. M/s Adoni Exports Ltd & Ors, AIR 2004 Gujarat 259″ (Short Note: Order 39 Rule 1CPC- Bank Guarantee invoked in the event of non-performance of contract by the plaintiff- injunction granted against bank is not justified on the ground that no default was committed by the plaintiff- Hence injunction order is vacated).
  5. “Mohd.Sharif V/s. A.D.J. No. & Anr, AIR 2004 Rajasthan 58”(Short Note:  Order39 Rule1&2 injunction refused by deciding disputed question of fact finally at interim stage- Held, Court should not go to the extent of deciding main case- The discretion in the matter should be exercised on reason and sound judicial principles- case remanded for fresh decision)
  6. ” Ashok Kumar Bajpai V/s. Dr. (Smt) Ranjana Bajpai, AIR 2004 Allahabad 107″(Short Note: Order 39 Rule1&2 CPC, Court should not grant interim relief which amounts to final relief- But such relief could be granted in exceptional case- But court has to record reason for such order for and special circumstances should also be enumerated which warranted injunction).
  7. “Bachan Singh V/s. Sadhu Singh&Ors, AIR2004 Punjab &Haryana 65”(Short Note: Order 39 Rule 1&2 CpC Injunction against defendant was refused as the possession of plaintiff was found to be that of trespasser and defendant was found to true owner).
  8. ” Special Direction & Anr V/s. Mohd. Gulam Ghouse & Anr, AIR 2004 Supreme Court 1467″(Short Note: show cause notice issued by statutory body, Writ filed challenging show cause notice and seeking interim relief restraining appellant from initiating any proceedings in pursuance of show cause notice- Held, Challenging show cause notice through writ and granting of interim relief by High Court is not proper).
  9. ” Trilochan Jena & OrsV/s. RabindraNath Jena, AIR 2004 Orissa 79″(Short Note: -Order 39 Rule1&2 CPC Ex-parte  injunction granted in respect of disputed land, application moved complaining disobedience of interim order- Appellant/ defendants are not entitled to equitable relief till allegation against them are adjudicated).
  10. ” A.K. Pannusamy V/s. Thakkalam &Karuppa,AIR2004Madras 147″ (Short Note: Order 39 Rule 1&2 CPC, application moved for issue of  injunction, defendant also filed objection and  affidavit under the circumstances it is incumbent upon the court to dispose of the application either way , it should not be kept pending).

FAQ:

Q: What is temporary injunction under CPC?

Ans: CPC की धारा 94 (C)   के सन्दर्भ में न्यायालय को अस्थायी व्यादेश जारी करने कीशक्ति दी गयी है न्यायालय का समाधान हो जाने पर न्यायालय  साम्या के सिद्धान्त केआधार तीन सिद्धान्तों को ध्यान मे रख करअस्थाई व्यादेश जारी कर सकेगा(1)प्रथम दृष्टया मामले का होना(2) अपूर्णनीय क्षति(3) सुविधा का सन्तुलन।

Q:What is the time limit for temporary injunction?

Ans:जहाँ एकपक्षीय अस्थायी व्यादेश जारी किया गया वहाँ व्यादेश जारी करने ‘के तिथि से 30दिन के भीतर प्रार्थना पत्न का निस्तारण किया जायेगा[Order XXXIX Rule 3A of the Code of Civil Procedure, 1908]

Q:What is the rule of temporary injunction?

Ans:  भारतीय विधि में temporary injunction के द्वारा वादी के हित का संरक्षण किया जाता है ।

Q:What is temporary injunction in CPC Order 39?

Ans: Order XXXIX Rule 1 of the Code of Civil Procedure, 1908में temporary injunction को परिभाषित किया है(1)किसी पक्षकार को कोई  कार्य  करने या न करने के आदेश देने वाली न्यायिक कार्यवाही है। (2) यह किसी विशेष विशिष्ट आदेश है जिसके द्वारा न्यायलय ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप या अहस्तक्षेप की धमकी देने से रोकने वाला आदेश है।(3)यह एक ऐसा विशिष्ट आदेश है जिसके द्वारा न्यायलय ऐसे किसी दोषपूर्ण कार्य को, जो प्ररम्भ किया जा चुका है, जारी रखने से प्रतिवारित करने अथवा ऐसे कार्य की प्रारम्भ करने की धमकी को रोकने के लिये देता है।

Q:What is an example of a temporary injunction?

Ans: Exampl of temporary injunction-: A व्यक्ति का घर है, A के घर के मेन डोर के वाहर  B एक दीबार खड़ी कर रहे हैं और यदि B दीबार खड़ी कर लेता है तो ज़ाहिर सी बात है कि A अब अपने घर  के मेन डोर से बाहर नहीं निकल पाएंगा। अब जो B का ऐक्ट है इस के खिलाप A कोर्ट जाता है और अपने बाहर जाने का अधिकार है के बारे में और B के गलत दीवार खडी करने के  बारे में केस लाता है कि सर B को रोका जाए कि इस दीबार को खड़ा न करें।यहां कोर्ट से क्या मांग रहे हैं यहां  Court से  prohibitory injunction मांग रह है।  यह  एक  Temporary Injunction है और जब कोर्ट merit के अधार पर Decree पास  करता है और अब यहां कोर्ट B से कहेगा कि अब आप कोई दीवार नहीं बनायेगे और B को permanently रोका जाता हैतो इसको permanent Or Perpetual Injunction कहा जाता हैऔर  साथ ही साथ  कोर्ट  “कुछ करने का आदेश देता है जैसे- B से कहा जाता कि A के घर के मेन डोर के वाहर जो B ने दीबार खड़ी की है उसको तोडकर हटाए। तो इसे Mandatory Injunctionकहा जाता है।

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